प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी
1.प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी (सन् 1900 ई. से 1915 ई.)
प्रश्न-1. प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी पर प्रकाश डालिए?
अथवा
प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी की विशेषताएँ बताइए?
उत्तर-प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी (सन् 1900 ई.से 1915 ई.)
1.परिचय-
हिंदी कहानी साहित्य की एक प्रमुख विधा है, जो आज के समय में सबसे अधिक लोकप्रिय और प्रभावशाली रूप में दिखाई देती है। परंतु इसका विकास एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम है। कहानी के वर्तमान सशक्त और यथार्थवादी रूप तक पहुँचने से पहले हिंदी कहानी ने कई अवस्थाओं से होकर यात्रा की है। प्रेमचंद को हिंदी कहानी का शिल्पकार और वास्तविक जनक कहा जाता है, किंतु प्रेमचंद से पहले (सन् 1900 ई. से 1915 ई. तक) भी हिंदी में कहानी लेखन के प्रयास प्रारंभ हो चुके थे। यह काल प्रेमचंद-पूर्व हिंदी कहानी काल कहलाता है। इस समय कहानी अपने प्रारंभिक विकास काल में थी। अर्थात् इस समय कहानी विधा ने पत्र-पत्रिकाओं में छोटे–छोटे रूपों में आकार लेना शुरू किया, परंतु वह आज की तरह एक अच्छी कहानी के रूप में विकसित नहीं हुई थी।
इस समय कहानी अपना नए स्वरुप ग्रहण कर रही थी। नई शैली का विकास हो रहा था। लेखक नए-नए विषयों पर कहानियाँ लिख रहे थे। इस दौर में माधव प्रसाद ने ‘मन की चंचलता’, लाला भगवानदीन की ‘प्लेग की चुड़ैल’, वृन्दावन वर्मा की ‘राखी बंद भाई’ और नकली किला, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक की ‘रक्षाबंधन’ ज्वालादत्त शर्मा की ‘मिलन’ आदि ने कहानियाँ लिखीं थीं।
वास्तव में 1900 ई. में ‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशन के साथ हिंदी कहानी का जन्म होता है। इस पत्रिका में कहानी के प्रकशित होने के साथ कहानियों को एक दिशा मिलता है।
चंद्रधर शर्मा इस काल के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार मने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में केवल तीन कहानियाँलिखी थीं- ‘उसने कहा था’, ‘बुद्धू का कांटा’ और ‘सुखमय जीवन’। ‘उसने कहा था’, कहानी को कथा और शैली के हिसाब से सर्वश्रेष्ठ कहानी माना जाता है। इस कहानी का सरस्वती पत्रिका में सन् 1915 ई. में प्रकशन हुआ था।
2.प्रेमचंद-पूर्व हिंदी कहानी की प्रमुख विशेषताएँ-
(i) अनुवादित कहानियों का प्रभाव-
प्रेमचंद-पूर्व हिंदी कथा-साहित्य पर बंगला, अंग्रेज़ी और रूसी कहानियों के अनुवादों का गहरा प्रभाव पड़ा। इनसे कहानी में सुसंगठित संरचना, मनोवैज्ञानिक गहराई, यथार्थवादी दृष्टि, मानवीय संवेदना और सामाजिक सरोकार आए। अनुवादों ने हिंदी कहानी को आधुनिक और प्रभावशाली रूप देने की दिशा तैयार की।
(ii) मौलिक कहानियों का उदय-
प्रेमचंद-पूर्व काल में मौलिक हिंदी कहानियों का उदय लोककथाओं, सामाजिक जीवन और नैतिक अनुभवों से हुआ। लेखकों ने अनुवादों के प्रभाव से हटकर स्वयं जीवन-सत्य, आदर्श, मानवीय मूल्य और सरल भाषा पर आधारित कहानियाँ लिखीं। इस दौर ने हिंदी में आधुनिक मौलिक कहानी की नींव तैयार की। इस काल में बंग महिला की ‘दुलाईवाली‘ (1907) जैसी मौलिक कहानियों ने हिन्दी कहानी विधा को नई दिशा दी।
(iii) यथार्थवाद का प्रभाव-
प्रेमचंद-पूर्व कहानियों में धीरे-धीरे यथार्थवाद का प्रभाव बढ़ने लगा। इस युग में चमत्कार, कल्पना और आदर्शवाद की जगह आम लोगों का जीवन, उनका दुख-सुख, गरीबी, संघर्ष और सामाजिक समस्याएँ कहानी का हिस्सा बनने लगीं। इससे कहानियाँ जीवन के अधिक करीब और सच्चाई पर आधारित हो गईं।
(iv) आदर्शवाद और कल्पना-
प्रेमचंद-पूर्व कहानी में आदर्शवाद और कल्पना का प्रभाव स्पष्ट था। इस दौर की कहानियाँ नैतिक शिक्षा, सद्गुणों की विजय और चमत्कारिक घटनाओं पर आधारित होती थीं। पात्र अत्यधिक आदर्शवादी तथा घटनाएँ कल्पनाश्रित होती थीं। वास्तविक जीवन की समस्याएँ कम और उपदेशात्मक, मनोरंजक कथानक अधिक दिखाई देते थे। इस दौर की कहानियों में आदर्शवादी और कल्पनात्मक तत्वों का भी समावेश था।
(v) भाषा और शैली-
इस युग कहानी की भाषा सरल, नैतिक-उपदेशात्मक और वर्णनप्रधान थी। खड़ी बोली के साथ ब्रज, संस्कृत तथा उर्दू शब्दों का मिश्रण मिलता है। शैली में विवरण अधिक और संवाद कम थे। कथन सीधा, सरल तथा बाल-साहित्य और धार्मिक-लोककथाओं जैसा प्रवाह दिखाई देता था। अंत में यही कह सकता हूँ कि भाषा और शैली में सरलता और सहजता का प्रयोग होता था, जो आम पाठकों के लिए सुलभ थी।
अंत में कह सकते हैं कि हिंदी कथा की यात्रा के पहले चरण में कहानी अभी अपनी बाल अवस्था में थी। प्रेमचंद के आने से पूर्व चंद्रधर शर्मा गुलेरी और जय शंकर प्रसाद के अलावा हिंदी कहानी का कोई सशक्त रूप प्रकट नहीं हुआ था। सन् 1900 ई. के समय धीरे-धीरे कहानी के मौलिक रूप का विकास हो रहा था।
प्रेमचंद पूर्व प्रमुख कहानीकार और उनकी कहानियाँ
1.चंद्रधर शर्मा गुलेरी- उसने कहा था, सुखमय जीवन, बुद्धू का कांटा
2.माधव प्रसाद मिश्र- मन की चंचलता
3.वृन्दावन लाला वर्मा- राखी बंद भाई
4.केशव प्रसाद सिंह- चंद्रलोक की यात्रा
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