Ram Laxman Parshuram Sanvad Summary
Ram Laxman Parshuram Sanvad Summary ?
पाठ-राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद-तुलसीदास
पाठ का सार (Summary)
अब हम बात करते हैं CBSE Class 10 क्षितिज हिंदी-अ के पाठ राम–लक्ष्मण–परशुराम संवाद की तो चलो शुरू करें-
पाठ्यक्रम में यह भाग रामचरितमानस के बाल कांड से लिया गया है। सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिव धनुष टूट जाता है। जब परशुराम को धनुष के टूटने की ध्वनि सुनाई देती है तब वे क्रोधित होकर सभा में आ जाते हैं। क्रोध में ही वे धनुष को तोड़ने वाले से सभा से बाहर आने को कहते हैं। लेकिन परशुराम का यह तरीका लक्ष्मण को पसंद नहीं आता है। फिर परशुराम और लक्ष्मण के बीच जो संवाद होता हैं उसी का यहाँ पर उल्लेख किया जा रहा है ।
पद संख्या-1 Ram Laxman Parshuram Sanvad Summary?
पहले पद में राम परशुराम से कहते हैं कि शिव धनुष को तोड़ने वाला आपका ही कोई एक दास होगा। मेरे लिए क्या आदेश है? आप मुझे बताइए। राम की ये बात सुनकर परशुराम क्रोध में बोलते हैं- सेवक तो वो होता है जो सेवा का काम करता है। उसने तो धनुष को तोड़कर शत्रुता का कार्य किया है। हे! राम सुनो जिसने भी शिव धनुष तोडा है वह मेरे लिए सहस्रबाहु के समान शत्रु है। जिसने भी इस धनुष को तोडा है, वह सभा से बाहर आ जाए अन्यथा सभी राजा मारे जाएँगे।
मुनि के क्रोध पूर्ण वचन सुनकर लक्ष्मण मुस्काते हैं और परशुराम का अपमान करते हुए कहते हैं कि मैंने बचपन में अनेकों धनुहियाँ तोड़ डाली तब आपने क्रोध नहीं किया। आपका इतना लगाव इसी धनुष पर क्यों है? लक्ष्मण के वचन सुनकर परशुराम क्रोधित होकर कहते हैं-हे बालक! तू संभलकर नहीं बोल रहा है। पूरा संसार जानता है कि यह धनुष शिव का है।
पद संख्या -2 Ram Laxman Parshuram Sanvad Summary?
दूसरे पद में लक्ष्मण हँसकर कहते हैं-मेरी नजर में सभी धनुष एक जैसे हैं । इस पुराने धनुष के टूटने से न किसी की हानि हुई और न ही किसी का लाभ हुआ। भैया राम ने धनुष को देखा और छुआ इतने में टूट गया, इसमें उनका कोई दोष नहीं है। आपतो व्यर्थ में नाराज हो रहे हो। इतना सुनते ही परशुराम अपने फरसे को देखकर लक्ष्मण पर क्रोधित होते हैं। और कहते हैं-लगता है तूने मेरे बारे में नहीं सुना है? मैं बालक समझकर तेरा वध नहीं कर रहा हूँ। तू मुझे सामान्य मुनि समझ रहा है।
मैं बचपन से बालब्रहाम्चारी, क्रोधी और क्षत्रिय कुल का शत्रु हूँ। मैंने कई बार पृथ्वी को जीतकर ब्राह्मणों में दान की है। हे राजकुमार! इस फरसे को देख लो, इससे मैंने सहस्रबाहु के शरीर को काट डाला था। तू अपने माता-पिता को चिंता में न डाल। मेरा फरसा इतना भयंकर है कि इसके प्रभाव मात्र से ही गर्व में पलता शिशु नष्ट हो जाता है।
पद संख्या-3 Ram Laxman Parshuram Sanvad Summary
तीसरे पद में लक्ष्मण हँसकर मीठी वाणी में कहते हैं-हे मुनि! आप तो बहुत बड़े योद्धा निकले। आप बार-बार मुझे फरसा दिखाकर डरा रहे हैं। जैसे आप एक फूंक में पहाड़ उड़ा दोगे। यहाँ पर भी कोई कुम्हड़ बतिया नहीं है जो तर्जनी उँगली देखकर मर जाएगा। मैंने आपका फरसा, धनुष-बाण देखकर अभिमान में कुछ कह दिया। आपको ब्राह्मण समझकर मैंने क्रोध को सहन कर लिया। हमारे कुल की परम्परा है- देवता, ब्राह्मण, भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाते। आपका एक-एक वचन करोंड़ों बज्रों के समान कठोर है। आपने व्यर्थ में धनुष-बाण धारण कर रखे हैं। इतना सुनते ही परशुराम क्रोधित हो जाते हैं।
पद संख्या-4 Ram Laxman Parshuram Sanvad Summary
चौथे पद में परशुराम कहते हैं- हे विश्वामित्र! यह बालक निडर, मूर्ख और अपने कुल को हानि पहुँचाने वाला है। मैं इसे अभी क्षण भर में मार डालूँगा फिर मुझे कोई दोष न देना। अगर आप इसे बचाना चाहते हो तो इसे मेरा बल और क्रोध बताकर बचा लो।
लक्ष्मण जी कहते हैं- आपने कई बार अपने मुँह से अपने बारे में बताया है। आप क्रोध को सहन न करो जो भी कहना हो कह डालो। आप वीर और धैर्यवान हैं। आपके द्वारा गाली देना शोभा नहीं देता है। शूरवीर शत्रु को सामने देखकर अपनी प्रसंशा नहीं करता बल्कि युद्ध करता है।
पद संख्या-5 Ram Laxman Parshuram Sanvad Summary?
पाँचवे पद में लक्ष्मण जी परशुराम से कहते हैं- आप तो मृत्यु को मेरे लिए जबरदस्ती बुला रहे हो। इतना सुनते ही मुनि फरसा को सँभालते हुए कहते हैं-मुझे कोई दोष न देना अब यह बालक कड़वे वचनों के कारण वध के योग्य हो गया है। अभी तक बच्चा समझकर मैं इसे बचाता रहा हूँ लेकिन अब सच में यह मरने योग्य हो गया है। तब विश्वामित्र कहते हैं -हे! मुनि साधु लोग बच्चों की गलतियों को माफ़ कर देते हैं।
फिर परशुराम बोलते- मैं बहुत ही क्रोधी हूँ मेरा फरसा भी बहुत ही तेज है। यह बालक मेरे गुरु के सामने जवाब दे रहा। आपके स्वाभाव के कारण मैं इसे छोड़ रहा हूँ। नहीं तो थोड़े से श्रम में इसे फरसे से मारकर गुरु ऋण से मुक्त हो जाऊँगा। विश्वामित्र मन ही मन हँसकर कह रहे हैं कि मुनि को सबकुछ हरा ही हरा दिखाई दे रहा है। जिसे वे गन्ने की खांड समझ रहे हैं वे लोहे की तलवार हैं।
पद संख्या-6
छठवें पद में लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं- हे! मुनि आपके स्वाभाव से कौन परिचित नहीं है। आप अपने माता-पिता के ऋण से मुक्त हो चुके हो। लेकिन गुरु का ऋण अभी शेष है। यह ऋण लगता है आप मुझसे ही चुकाना चाहते हो? ब्याज भी बहुत हो गया होगा। आप ऐसा करिए किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लो, मैं तुरंत ही थैली खोल दूँगा। लक्ष्मण के कड़वे वचन सुनते ही परशुराम अपना फरसा संभाल लेते हैं। तो पूरी सभा हाय! हाय! बोल उठती है।
लक्ष्मण कहते हैं- हे ! मुनि आप बार-बार मुझे फरसा दिखा रहे हो और मैं आपको ब्राहमण समझकर बचा रहा हूँ। हे! ब्राह्मण देवता लगता है आपका कभी किसी वीर योद्धा से सामना नहीं हुआ है आप अपने घर के ही योद्धा हैं। पूरी सभा कह उठती है सही कहा। राम लक्ष्मण को आँखों से इशारा करके मना करते हैं। लक्ष्मण के वचन आग में घी का कामकर रहे थे। लक्ष्मण और परशुराम के बीच बात बढ़ती देखकर राम अंत में जल के सामान शीतल वचन बोलते हैं।
धन्यवाद!