सगुण भक्ति की विशेषताएँ उदाहरण सहित
सगुण भक्ति की विशेषताएँ उदाहरण सहित?
प्रश्न-सगुण भक्ति की विशेषताएँ उदाहरण सहित?
उत्तर-सगुण भक्ति- सगुण भक्तिकाल हिंदी साहित्य के भक्ति आंदोलन का एक प्रमुख युग है, जिसमें ईश्वर को साकार, सजीव और सगुणों से युक्त मानकर आराधना की गई है। इसका प्रभाव साहित्य, संगीत, कला और समाज पर गहराई से पड़ा। सगुण भक्तिकाल का उद्देश्य केवल ईश्वर की आराधना करना नहीं था, बल्कि समाज में प्रेम, समानता और नैतिकता का संदेश देना भी था।
सगुण भक्ति में भगवान के साकार रूप की पूजा की जाती है। भक्तों ने भगवान राम और कृष्ण जैसे साकार अवतारों को अपना आराध्य माना और उनके गुणों एवं लीलाओं का गान किया। इस युग में भक्ति आंदोलन ने धार्मिक कर्मकांडों और औपचारिकताओं को त्यागकर प्रेम और समर्पण को भक्ति का आधार बनाया।
इस युग के भक्ति साहित्य को दो मुख्य धाराओं में बाँट सकते हैं-
(i) राम भक्ति धारा:- इसके अंतर्गत तुलसीदास जैसे कवियों ने भगवान राम की मर्यादा, आदर्श और धर्म का वर्णन किया।
(ii) कृष्ण भक्ति धारा:- इसमें सूरदास, मीरा बाई, रसखान, नंददास जैसे कवियों ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं, रासलीलाओं और प्रेम का वर्णन किया।
सगुण भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ उदाहरण सहित-
1-साकार ईश्वर की पूजा-
सगुण भक्ति में ईश्वर को साकार और गुणों से परिपूर्ण माना गया है। इस युग के कवियों ने भगवान को उनके विभिन्न रूपों में देखा, जैसे राम को मर्यादा पुरुषोत्तम और कृष्ण को लीलाधर एवं प्रेम का प्रतीक माना है। इन्होंने ईश्वर को माता-पिता, मित्र, प्रेमी और स्वामी के रूप में देखा है।
तुलसीदास ने अपने महाकाव्य रामचरितमानस में भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत किया है। इसका एक उत्तम उदाहरण अयोध्याकांड से मिलता है, जब भगवान राम अपने पिता दशरथ के वचनों का पालन करने के लिए खुशी-खुशी 14 वर्ष के वनवास को स्वीकार करते हैं।
उदाहरण-“रघुकुल रीत सदा चलि आई।
प्रान जाहुं बरु वचनु न जाई॥”
इस चौपाई में राम कहते हैं कि रघुकुल की परंपरा है कि वचन को निभाने के लिए प्राण भी त्याग दिए जाएं, लेकिन वचन न टूटे।
यह घटना भगवान राम के आदर्श चरित्र को दर्शाती है, जहाँ वे अपने कर्तव्य, सत्य और मर्यादा को सर्वोच्च मानते हैं। वे व्यक्तिगत सुख-दुख से ऊपर उठकर अपने परिवार, समाज और धर्म के लिए आदर्श रूप स्थापित करते हैं। यही गुण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम बनाता है।
वहीँ दूसरी ओर सूरदास ने कृष्ण के बाल रूप को इस प्रकार वर्णित किया-
“मैया कबहिं बढ़ैगी चोटी।
किती बार मोहि दूध पियत भई,
ये अबहू है छोटी।”
2-अवतारवाद का सिद्धांत-
सगुण भक्तिकाल का एक प्रमुख पहलू यह था कि ईश्वर मानवता के कल्याण के लिए अवतार लेते हैं। भगवान विष्णु के राम और कृष्ण अवतार को सगुण भक्ति का केंद्र बिंदु माना गया। राम को धर्म और मर्यादा का प्रतीक जबकि कृष्ण को प्रेम और लीलाओं का आदर्श माना गया।
उदाहरण-तुलसीदास ने राम को विष्णु के अवतार के रूप में माना है-
“भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मनहारी अद्भुत रूप बिचारी”।।
तुलसीदास ने यह भी स्पष्ट किया कि राम साकार रूप में विष्णु के अवतार हैं, जो पृथ्वी पर धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए आए हैं।
सूरदास ने कृष्ण के अवतार की महिमा को इस प्रकार वर्णित किया:
“मन मन्दिर में आरति उतारूँ, नंदलाल घनश्याम।”
3-भक्ति में प्रेम और समर्पण-
सगुण भक्ति का आधार प्रेम और समर्पण है। कवियों ने भगवान के प्रति अपने प्रेम को साकार रूप में व्यक्त किया है। यह प्रेम आध्यात्मिक था और इसका उद्देश्य ईश्वर के साथ निकटता प्राप्त करना था।
उदाहरण-मीरा बाई ने कृष्ण के प्रति प्रेम और समर्पण को इस प्रकार व्यक्त किया-
“पायो जी मैंने राम रतन धन पायो”।
4-राम भक्ति धारा-
राम भक्ति धारा सगुण भक्ति का एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें भगवान राम के चरित्र, गुणों और आदर्शों का वर्णन किया गया। राम को आदर्श राजा, पुत्र, भाई और पति के रूप में चित्रित किया गया है। तुलसीदास इस युग के प्रमुख कवि थे-
उदाहरण-तुलसीदास ने रामचरितमानस में राम के आदर्श चरित्र को प्रस्तुत किया-
“परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।”
दूसरों के हित ( भलाई) के समान कोई धर्म नहीं है। दूसरों को कष्ट पहुँचाने के समान कोई पाप (अधर्म) नहीं है।
5-कृष्ण भक्ति धारा-
सगुण भक्ति का दूसरा महत्वपूर्ण भाग कृष्ण भक्ति है, जिसमें भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं, रासलीलाओं और प्रेम का वर्णन किया गया। सूरदास, मीरा बाई, रसखान और विद्यापति इस धारा के प्रमुख कवि थे।
उदाहरण- सूरदास ने कृष्ण की माखन चोरी लीला को इस प्रकार वर्णित किया:
“माखन चोर नंद किशोर, ब्रज का गौरव राधा प्यारे।”
मीरा बाई ने कृष्ण को अपने आराध्य के रूप में प्रस्तुत किया-“मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।”
6-अवधी और ब्रज भाषा का प्रयोग-
सगुण भक्ति के कवियों ने अपनी रचनाएँ अवधी और ब्रजभाषा में लिखीं। इससे भक्ति साहित्य आम जनता तक पहुँच सका।
उदाहरण– तुलसीदास ने रामचरितमानस को अवधी में लिखा, जबकि सूरदास और मीरा बाई ने ब्रजभाषा का उपयोग किया।
“मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो।
मोसे कहत मथुरा में जायो”।।
सूरदास ने इस पद में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का चित्रण किया है, जिसमें उन्होंने ब्रजभाषा के सहज और मधुर स्वरूप का प्रयोग किया।
7-संगीत का महत्व-
सगुण भक्ति में संगीत और नृत्य को भक्ति का अभिन्न हिस्सा माना गया। भजन, कीर्तन और रासलीलाएँ भक्ति को सरल और आनंदमय बनाती थीं। सूरदास और मीरा बाई की रचनाएँ गेय शैली में हैं-
उदाहरण- “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई”।।
मीरा बाई ने इस पंक्ति में अपने संपूर्ण समर्पण को व्यक्त किया है। यह पंक्ति आज भी भक्ति संगीत और शास्त्रीय संगीत में अत्यंत लोकप्रिय है।8-गुरु की महिमा-
सगुण भक्ति में गुरु को ईश्वर के समकक्ष माना गया। गुरु को भक्ति मार्ग में मार्गदर्शक के रूप में देखा गया। तुलसीदास ने गुरु को ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम बताया-
उदाहरण-“गुरु बिनु भव निधि तरइ न कोई।
जो बिरंचि संकर सम होई”।।
तुलसीदास कहते हैं कि बिना गुरु की कृपा के संसार सागर को कोई पार नहीं कर सकता, चाहे वह ब्रह्मा या शंकर जैसा महान क्यों न हो।
9-सामाजिक समानता का संदेश-
सगुण भक्ति कवियों ने समाज में जाति, धर्म, और लिंग के भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया। यह विश्वास किया गया कि ईश्वर की भक्ति का अधिकार सभी को है। तुलसीदास ने अपने काव्य में बार-बार यह संदेश दिया है कि भगवान के लिए भक्ति सबसे महत्वपूर्ण है, न कि जाति, कुल, या सामाजिक स्थिति-
उदाहरण- “जाति-पाति पूछे नहिं कोई।
हरि को भजे सो हरि का होई।”
रसखान, जो एक मुस्लिम कवि थे, ने ब्रजभाषा में कृष्ण भक्ति के सुंदर पंक्तियाँ लिखीं हैं-
“मानुष हों तो वही रसखान,
बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वालन।”
10-भगवान की लीलाओं का वर्णन-
सगुण भक्तिकाल में कवियों ने भगवान की लीलाओं का बहुत सुंदर वर्णन किया है। रामायण में राम की वनलीला और कृष्ण साहित्य में उनकी बाल लीलाओं और रासलीलाओं का प्रमुख स्थान रहा। सूरदास ने कृष्ण की बाल लीलाओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया-
उदाहरण-“जसोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दुलरावै, मल्हावै,
जोइ-जोइ कछु गावै।”
11-नैतिक और धार्मिक शिक्षा-
सगुण भक्ति साहित्य में समाज को नैतिकता और धार्मिकता का संदेश दिया। इसमें दया, सत्य, अहिंसा और परोपकार को महत्वपूर्ण बताया गया। तुलसीदास ने रामचरितमानस में धर्म का मर्म बताया-
उदाहरण-“धर्म न दूसर सत्य समाना।
अगम अछूत अटल अनुमाना।”
12.दोहा, सोरठा और चौपाई का विशेष प्रयोग-
इस काल के कवियों ने अपनी रचनाओं में दोहा, सोरठा और चौपाई छंद का विशेष प्रयोग किया है।
उदाहरण- तुलसीदास का दोहा-
“तुलसी काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान”।।
13-प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ-
सगुण भक्ति के प्रमुख कविय जिन्होंने भक्ति साहित्य को समृद्ध किया-
तुलसीदास– रामचरितमानस, विनय पत्रिका।
सूरदास– सूरसागर, साहित्य लहरी।
मीरा बाई– फुटकर गीत।
रसखान– कृष्ण भक्ति पर आधारित कविताएँ।
14.निष्कर्ष-
सगुण भक्ति को भारतीय साहित्य का स्वर्ण युग था। इस युग के कवियों ने समाज को प्रेम, समानता और ईश्वर के प्रति समर्पण का संदेश दिया। राम और कृष्ण के रूप में ईश्वर की सगुण आराधना ने भारतीय समाज को आध्यात्मिकता और नैतिकता का पाठ पढ़ाया। इस काल के कवियों की रचनाएँ आज भी भारतीय संस्कृति और साहित्य का अभिन्न अंग हैं।
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