नमक का दरोगा प्रश्न उत्तर
नमक का दरोगा प्रश्न उत्तर? इसमें एक ईमानदार नमक के दरोगा की कहानी बताई गई है। जो कालाबाजार और भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज उठता है। उसे धनी व्यापारी खरीदने का प्रयास करता है । लेकिन वह किसी भी कीमत पर झुकता नहीं है। वह सत्य के मार्ग को किसी भी दशा में नहीं छोड़ता है। अंत में सत्य और ईमानदारी की विजय होती है।
पाठ-नमक का दरोगा-प्रेमचंद
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न-1.कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों ?
उत्तर-कहानी में मुंशी वंशीधर हमें सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। वंशीधर ‘नमक का दरोगा’ कहानी का प्रमुख पात्र है। वह एक सच्चा, ईमानदार, कर्तव्य का पालन करने वाला एवं आज्ञाकारी पुत्र है। उसके पिता नौकरी में रिश्वत और बेईमानी को सही मानते हैं। लेकिन वंशीधर ईमानदार दरोगा है, वह सत्य के मार्ग पर चलता है। नौकरी चले जाने पर भी उन्हें कोई पछतावा नहीं होता है। वंशीधर की ईमानदारी को देखकर अलोपीदीन उसे मैनेजर बना देते हैं । वंशीधर का यही सत्य चरित्र हमें भी प्रभावित करता है।
प्रश्न-2.’नमक का दरोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं ?
उत्तर- ‘नमक का दरोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के दो महत्वपूर्ण पहलू उभरकर सामने आते हैं-
1- वह पैसे के बल पर जेल से बाहर आ जाता है।
2- वह वंशीधर की ईमानदारी से प्रभावित होकर उसे मैनेजर बना देता है।
प्रश्न-3.कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं।
निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं-
(क) वृद्ध मुंशी (ख) वकील (ग) शहर की भीड़
उत्तर- (क) वृध्द मुंशी- वृध्द मुंशी समाज में व्याप्त रिश्वतखोरी को उजागर करता है। वह अपने बेटे को नौकरी खोजने जाते समय ऊपरी आय के विषय में जमकर बताता है। वह हर तरह से अपने बेटे के मन में ऊपरी आय का लोभ पैदा करने का प्रयास करता है।
(ख) वकील- वकीलों के माध्यम से यह उजागर हुआ है कि वे पैसे वालों के लिए अन्याय का भी साथ देते हैं। वे धन के लोभ में फँसकर न्याय का गला घोंट देते हैं।
(ग) शहर की भीड़- जब पंडित जी को गिरफ्तार किया जाता है तो शहर की भीड़ उन्हें देखने के लिए उमड़ पड़ती है। जिससे उजागर होता है कि आम जनता को मनोरंजन के लिए कोई- न- कोई अवसर चाहिए।
प्रश्न-4.निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए-नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।
(क) यह किसकी उक्ति है?
उत्तर- दरोगा वंशीधर के पिता की है।
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है?
उत्तर- मासिक वेतन एक निश्चित तिथि पर मिलता है और फिर धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार पूर्णमासी का चाँद एक रात को पूरा दिखाई देता है और फिर धीरे-धीरे कम होते हुए गायब हो जाता है।
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?
उत्तर- मैं एक पिता के इस वक्तव से सहमत नहीं हूँ। एक पिता का कर्तव्य होता है कि वह अपने पुत्र को सत्य, ईमानदारी और कर्तव्य के मार्ग पर चलने की सीख दे।
प्रश्न-5.‘नमक का दरोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘नमक का दरोगा’ कहानी के अन्य शीर्षक ‘ईमानदार दरोगा’ अथवा ‘कर्तव्य परायणता’ रखे जा सकते हैं।
कहानी में दरोगा वंशीधर एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में चित्रित है। इसलिए पहला शीर्षक सही है। वहीं वह अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाता है। इसलिए दूसरा शीर्षक भी सही है।
प्रश्न-6.कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते ?
उत्तर-अलोपीदीन का वंशीधर को नियुक्त करने के पीछे उसकी धर्मनिष्ठता, ईमानदारी, कर्तव्य पालन तथा सच्चाई प्रमुख कारण हो सकते हैं। हम भी कहानी का अंत इसी प्रकार करते। कहानी का यह अंत पूरी तरह से सही हैं।
पाठ के आस – पास
प्रश्न-1.दरोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते ?
उत्तर-वंशीधर का ऐसा करना पूरी तरह से उचित था क्योंकि उसने अपने कर्तव्य और ईमानदारी के कारण पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार किया था। पंडित द्वारा उसे नौकरी पर रखना उसकी इन्हीं विशेषताओं का परिणाम था। यदि हम वंशीधर की जगह होते तो हम भी नौकरी स्वीकार कर लेते ।
प्रश्न-2.नमक विभाग के दरोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों?
उत्तर-वर्तमान समाज में अनेक ऐसे पद हैं जिन्हें पाने के लिए लोग लालायित रहते हैं। जिनमें प्रमुख हैं- अध्यापक, पुलिसकर्मी, सरकारी डॉक्टर, सरकारी विभागों के कर्मचारी, बड़े-बड़े नेताओं के सहायक, आयात व निर्यात विभाग।
लोग इन पदों को पाने के लिए लालायित इसलिए रहते हैं क्योंकि इनमें अच्छी आय के साथ-साथ मान-सम्मान भी मिलता है।
प्रश्न-3.अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्कों ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।
उत्तर- एक बार किसी बड़े नेता को एक गलती के कारण पुलिस उन्हें जेल भेज देती है। लेकिन मेरा अनुमान था कि वह अपने धन, बल और छल से मुक्त हो जाएगा और वास्तव में वैसा ही हुआ।
प्रश्न-4.पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया। वृद्ध मुंशी जी द्वारा वह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए-
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।
उत्तर-जब पढ़ने-लिखने के बाद हमें नौकरी नहीं मिलती तो हमें पढ़ना-लिखना व्यर्थ–सा लगता है।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।
उत्तर-जब हम विभिन्न विषयों को अपनी पढ़ाई के आधार पर समझते हैं तो हमें अपना पढ़ना-लिखना सार्थक लगता है।
(ग)‘पढ़ना-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा:
साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं)
उत्तर-पढ़ना-लिखना हम दोनों को समान नहीं मानते हैं। साक्षरता तथा शिक्षा एक –दूसरे के समान न होकर एक-दूसरे के पूरक साक्षरता के माध्यम से ही व्यक्ति शिक्षा की सीढ़ियाँ चढ़ता है।
प्रश्न-5.लडकियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। वाक्य समाज में लडकियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है?
उत्तर- वंशीधर के पिता लड़कियों को पुरुष समाज में घास जैसी वस्तु के समान मानते हैं। जिस प्रकार घास बिना खाद-पानी के उगकर बड़ी हो जाती हैं उसी प्रकार से लडकियाँ भी शीघ्र बड़ी हो जाती हैं। समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता है क्योंकि उनके विवाह में काफी धन खर्च करना पड़ता है। यह वाक्य इसी स्थिति की सच्चाई को प्रकट करता है।
प्रश्न-6.इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करने वाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे आए। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था। अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? उपर्युक्त टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए लिखें।
उत्तर-अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर हमारे मन में घृणा का भाव पैदा होगा। क्योंकि ऐसे व्यक्ति गलत काम करते हैं और धन के बल पर बच निकलते हैं।
समझाइए तो ज़रा
प्रश्न-1.नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
उत्तर-इस कथन का अर्थ है कि एक बार नौकरी मिल जाए तो धन तो अपने आप आने लगता है। चाहे वह ऊपरी आमदनी के रूप में आए।
अथवा
इस वाक्य का अर्थ है कि व्यक्ति को ऐसे पद पर काम करना चाहिए जहाँ खूब ऊपरी आमदनी यानि रिश्वत का पैसा मिलता हो, आज का सिद्धांत केवल पैसा कमाना है।
प्रश्न-2.इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि अपनी पथप्रदर्शक और आत्मावलंबन ही अपना सहायक था।
उत्तर- वंशीधर एक सत्यवादी, ईमानदार तथा मेहनती व्यक्ति था। ऐसे इंसान का मित्र, पथ-प्रदर्शक तथा सहायक उसके अपने ही गुण होते हैं।
प्रश्न-3.तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया है।
उत्तर- मुंशी वंशीधर नमक के दरोगा थे। वे रात में गहरी नींद में सोये हुए थे तभी उन्हें नदी के पुल से गाड़ियों की आवाज सुनाई देती है। वे तुरंत नदी के पुल पर जाते हैं तो उन्हें लगता है कि कोई चोरी-छिपे कुछ सामान ले जाया जा रहा है। उनका शक सही निकलता है। जब वे बोरियों को टटोलते हैं तो उसमें नमक मिलता है। इस तरह जो पहले से सोच रहे थे, वह तर्क से स्पष्ट हो गया।
प्रश्न-4.न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं; इन्हें वह जैसे ही चाहती है, नाचती हैं।
उत्तर- आज के समय में सब जगह धन (लक्ष्मी) का ही राज्य है। न्याय की अदालत में वकीलों को पैसे देकर आसानी से अपने पक्ष में किया जा सकता है। धन के बल पर समाज के नियम बनाए जाते हैं। अर्थात् धन के बल पर न्याय और नीति को खिलौने की तरह नचाया जा सकता है।
प्रश्न-5.दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
उत्तर- इसका अर्थ है कि भले ही लोग सो क्यों न जाएँ। लेकिन किसी विषय पर तर्क देने से चूकते नहीं हैं।
अथवा
लेखक एक अनुसार वंशीधर ने अलोपीदीन को नमक का गैर क़ानूनी से व्यापार करने पर गिरफ्तार कर लिया जाता है। उनके गिरफ्तार की चर्चा सारी रात होती रही। आधीरात के समय सब गहरी नींद में सो रहे थे। लेकिन अलोपीदीन के बुरे कर्मों और वंशीधर की ईमानदारी की चर्चा खूब हो रही थी।
प्रश्न-6.खेद ऐसी समझ पर! पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।
उत्तर- वंशीधर ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपनी नौकरी का बलिदान कर दिया। जिससे उसके पिता उसके पढ़ने-लिखने को व्यर्थ मानते हैं।
प्रश्न-7.धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
उत्तर- पंडित अलोपीदीन के नमक का गलत ढंग से व्यापार करने पर वंशीधर जेल भेज देते हैं। वह वंशीधर को रिश्वत देते हैं लेकिन वह मना कर देता है । धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
अथवा
वंशीधर ने धर्म के आधार पर काम किया जिससे उसकी विजय हुई। पंडित अलोपीदीन के धन का नशा चूर-चूर हो गया। इस तरह धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
प्रश्न-8.न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
उत्तर-जब पंडित अलोपीदीन को अदालत में लाया गया तो धन के बल पर उन्हें छुड़ाने के प्रयास होने लगे। जिससे यह प्रतीत होने लगा कि न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
भाषा की बात
प्रश्न-1.भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों के जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज से यह कहानी अद्भुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है?
उत्तर-प्रस्तुत कहानी में भाषागत अनेक विशेषताएँ उभर कर सामने आती हैं। भाषा में चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग तथा उर्दू शब्दों के प्रयोग से इसका सौन्दर्य बढ़ गया है। आम बोलचाल की भाषा के प्रयोग से अर्थग्रहण करने में सरलता हुई है। इन प्रयोगों से कहानी का कथ्य एक निरंतर गति से आगे बढ़ता है, कहीं भी ठहराव की स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है। इन विशेषताओं को निम्नलिखित उदाहरणों से समझाया जा सकता है-
उर्दू-हिंदी शब्दों का प्रयोग- “अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख़्तार हो”।
“अमले उनके सेवक, वकील-मुख़्तार उनके आज्ञापालक और अर्दली, चपरासी तथा चौकीदार तो उनके बिना माल के गुलाम थे”।
मुहावरों का प्रयोग- “वृद्ध मुंशी जी को सुख-संवाद मिला, तो फूले न समाए”।
चित्रात्मकता- “बरदी पहनी, तमंचा जेब में रखा और बात ही बात में घोड़ा बढ़ाए हुए पुल पर आ पहुँचे”।
“भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा”।
प्रश्न-2.कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो विशेषण और बताइए। साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए।
उत्तर-कहानी में मासिक वेतन के लिए- ‘पूर्णमासी का चाँद’ तथा ‘मानव प्रदत्त’ विशेषणों का प्रयोग हुआ है।
मासिक वेतन के लिए ‘बर्फ का टुकड़ा’ विशेषण भी प्रयोग कर सकते हैं।
नए विशेषण- ‘एक दिवसीय आय’; ‘दीर्घ प्रतीक्षा का फल’।
तर्क- 1. आज की मंहगाई में मासिक वेतन तो एक दिवसीय आय मात्र है।
- मासिक वेतन तो बड़ी दीर्घ प्रतीक्षा का फल होता है।
प्रश्न-3.(क) बाबूजी आशीर्वाद!
(ख) सरकारी हुक्म!
(ग) दातागंज के !
(घ) कानपुर !
दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए।
उत्तर-(क) बाबूजी, आशीर्वाद ही सर्वोपरि है।
(ख) सरकारी हुक्म को टाला नहीं जा सकता।
(ग) पंडित अलोपीदीन दातागंज के निवासी थे।
(घ) गाड़ियाँ कानपुर जाएँगी।
डॉ. अजीत भारती