श्लेष अलंकार के 100 उदाहरण
श्लेष अलंकार के 100 उदाहरण?
श्लेष अलंकार, जिसे यमक अलंकार भी कहा जाता है, हिंदी काव्यशास्त्र का एक अत्यंत रोचक और प्रभावशाली अलंकार है। यह अलंकार उन शब्दों का प्रयोग करता है, जिनके उच्चारण एक समान होते हैं, पर उनके अर्थ अलग-अलग होते हैं। इसी कारण से पाठक या श्रोता को एक ही शब्द से अनेक भाव और अर्थ समझ में आते हैं, जिससे कविता की सौंदर्यता और रसपूर्णता बढ़ जाती है। श्लेष अलंकार में शब्दों की ऐसी योजना होती है कि अर्थ का द्वैत पाठक को भावनात्मक और बौद्धिक रूप से आकर्षित करता है।
इस अलंकार का उद्देश्य केवल भाषा को सजाना नहीं होता, बल्कि कवि किसी गूढ़ अर्थ, व्यंग्य या तुलना को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए, रहीम के दोहों में ‘पानी’ शब्द का प्रयोग मोती की चमक, मानव की प्रतिष्ठा और जल के रूप में किया गया है। इसी प्रकार, ‘रज’ शब्द अहंकार और धूल दोनों अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। ऐसे प्रयोग कविता को पठनीय और स्मरणीय बनाते हैं।
श्लेष अलंकार का उपयोग विशेष रूप से धार्मिक, नीतिपरक और रोमांचक कविताओं में देखने को मिलता है। यह पाठक की सूक्ष्मबुद्धि और कल्पनाशक्ति को जागृत करता है। शब्दों के इस द्वैत प्रयोग से कविता में गहराई, व्यंग्य और ललितता दोनों बढ़ती हैं।
सारांशतः, श्लेष अलंकार हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण अलंकार है जो शब्दों की मधुरता और अर्थ की बहुलता दोनों को एक साथ प्रस्तुत करता है। यह केवल भाषा की सुंदरता ही नहीं बढ़ाता, बल्कि पाठक को विचारशील और भावनात्मक रूप से प्रभावित भी करता है। इसकी मधुरता और बौद्धिकता इसे साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत मूल्यवान बनाती है।
श्लेष अलंकार की परिभाषा- श्लेष अलंकार वह अलंकार है जिसमें एक ही शब्द या शब्द समूह का प्रयोग एक साथ किया जाता है, लेकिन उसके अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं। दूसरे शब्दों में, एक ही शब्द से एक से अधिक अर्थ प्रकट किए जाते हैं। इसे यमक अलंकार भी कहते हैं। श्लेष अलंकार का उद्देश्य कविता में सौंदर्य, हास्य, व्यंग्य, गूढ़ अर्थ या गहराई पैदा करना होता है।
श्लेष अलंकार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-
-
एक शब्द से द्वैत अर्थ – जब एक शब्द के दो अर्थ निकलते हैं।
-
एक शब्द से बहुविध अर्थ – जब एक शब्द से तीन या अधिक अर्थ निकलते हैं।
उदाहरण 1:
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
अर्थ/व्याख्या:
यहाँ ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं—
-
मोती की चमक
-
मनुष्य की प्रतिष्ठा
-
चूने के लिए जल
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
विशेषता:
श्लेष अलंकार कविता में शब्दों की मधुरता और अर्थ की बहुलता को एक साथ प्रस्तुत करता है। यह पाठक की सूक्ष्मबुद्धि और कल्पनाशक्ति को भी जागृत करता है।
उदाहरण 1
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
अर्थ/व्याख्या:
यहाँ ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं—
-
मोती की चमक
-
मनुष्य की प्रतिष्ठा
-
चूने के लिए जल
→ इसलिए यह श्लेष अलंकार है।
उदाहरण 2
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक।।
अर्थ/व्याख्या:
‘हरि’ शब्द के दो अर्थ—
-
बंदर
-
भगवान
→ यह श्लेष अलंकार का उदाहरण है।
उदाहरण 3
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत की सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़ै अँधेरा होय।।
अर्थ/व्याख्या:
-
‘बारे’ शब्द के दो अर्थ— जलाने पर और बचपन में
-
‘बढ़ै’ शब्द के दो अर्थ— दीपक बुझाने पर और बड़ा होने पर
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 4
जो चाहो चटक न घटे, मैलो होय न मित्त
राज राजस न छुवाइये नेह चीकने चित्त।।
अर्थ/व्याख्या:
‘रज’ शब्द के दो अर्थ—
-
अहंकार
-
धूल
‘नेह’ शब्द के दो अर्थ— -
प्रेम
-
तेल
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 5
गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढ़ि।
कूपहुं से कहूं होत है, मन काहू को बाढ़ि।।
अर्थ/व्याख्या:
‘गुन’ शब्द के दो अर्थ—
-
रस्सी
-
गुण
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 6
माया महाठगिनि हम जानी।
तिरगुन फाँस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी।।
अर्थ/व्याख्या:
‘तिरगुन’ शब्द के दो अर्थ—
-
तीन गुण (सत्त्व, रजस्, तमस्)
-
तीन धागों वाली रस्सी
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 7
मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परे श्याम हरित दुति होय।।
अर्थ/व्याख्या:
‘हरित’ शब्द के दो अर्थ—
-
हर्षित (प्रसन्न होना)
-
हरे रंग का
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 8
अंग अंग में सजी है, छटा छटा छाजती।।
अर्थ/व्याख्या:
‘छटा’ शब्द के दो अर्थ—
-
शोभा
-
भिन्नता/पहेली
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 9
कहत नटत रीझत, खिजत, मिलत, खिलत लजियात।
भरे भौन में करत है, नैनन ही सब बात।।
अर्थ/व्याख्या:
‘भौन’ शब्द के दो अर्थ—
-
भवन
-
पेट
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 10
आए अज्ञात दिशा से, अनंत के घन।।
अर्थ/व्याख्या:
‘अनंत’ शब्द के दो अर्थ—
-
जिसका कोई अंत न हो
-
ईश्वर
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 11:
जो चाहो चटक न घटे, मैलो होय न मित्त
राज राजस न छुवाइये नेह चीकने चित्त।।अर्थ/व्याख्या:
‘रज’ शब्द के दो अर्थ—-
अहंकार
-
धूल
‘नेह’ शब्द के दो अर्थ—प्रेम और तेल→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
उदाहरण 12:
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक।।अर्थ/व्याख्या:
‘हरि’ शब्द के दो अर्थ—-
बंदर
-
भगवान
→ श्लेष अलंकार का उदाहरण।
13. सुबरन को ढूंढत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर।
अर्थ: यहाँ सुबरन शब्द के तीन अर्थ हैं—
-
कवि के लिए – सुंदर शब्द (सुंदर वर्ण)
-
व्यभिचारी के लिए – सुंदरी (सुंदर स्त्री)
-
चोर के लिए – सोना
➡ एक ही शब्द से तीन अर्थ निकलते हैं, अतः यह श्लेष अलंकार है।
14. मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरी सोय।
जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय।।**
अर्थ: यहाँ हरित शब्द के तीन अर्थ हैं—-
हरना (समाप्त करना)
-
हरा रंग
-
हर्षित (खुश) होना
➡ एक शब्द से कई अर्थ, अतः श्लेष अलंकार।
15. मधुबन की छाती देखो, सूखी इसकी कितनी कलियां।
अर्थ: कलियां शब्द के दो अर्थ—
-
फूल की कली
-
बच्चियाँ
➡ दो अर्थ एक साथ—श्लेष अलंकार।
16. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।।**
अर्थ: पानी शब्द के तीन अर्थ—-
मोती की चमक
-
मनुष्य का मान/सम्मान
-
चूने के लिए जल
➡ तीन अर्थ—श्लेष अलंकार।
17. चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यो न स्नेह गंभीर।
को घटी या बृषभानुजा, वे हलधर के बीर।।**
अर्थ:-
वृषभानुजा =
-
राधा
-
गाय
-
-
हलधर =
-
बलराम
-
बैल
➡ दो शब्दों के द्वि-अर्थ—श्लेष अलंकार।
-
18. जो रहीम गति दीप की कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो करै, बढ़े अंधेरो होय।।**
अर्थ:-
बारे = बचपन / जलाने पर
-
बढ़े = बड़ा होना / बुझ जाना
➡ दोनों शब्दों के दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
19. जो चाहो चटक न घटै, मैलो होय न मित्त।
रज राजस न छुवाइये, नेह चीकने चित्त।**
अर्थ:-
रज = रजोगुण / धूल
-
नेह = प्रेम / तेल
➡ एक ही शब्द के द्वि-अर्थ, श्लेष अलंकार।
20. भिखारिन को देख पट देत बार-बार।
अर्थ:
-
पट = कपड़ा
-
पट = दरवाज़ा
➡ एक शब्द, दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
21. मन की और जल नीर की एक व्यथा कर जोय।
ज्यों ज्यो वह नीचे चले, त्यों त्यों उज्जवल होय।।**
अर्थ:-
नीचे = गहराई में जाना
-
नीचा स्थान (निम्न स्थिति)
➡ दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
22. सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक।
जो करते बिप्लव, उन्हें हरि का आतंक।।**
अर्थ:-
हरि = बंदर
-
हरि = भगवान
➡ एक शब्द, दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
-
-
-
23. सूरज निकला पश्चिम से, सूरज डूबा पूर्व को।
अर्थ:
-
सूरज = सूर्य
-
सूरज = राजकुमार (राजा का बेटा)
➡ एक ही शब्द से दो अर्थ — श्लेष अलंकार।
24. वीर बढ़े चाल के साथ, शत्रु न बढ़े बोल के साथ।
अर्थ:
-
बढ़े = महान / ऊँचा होना
-
बढ़े = वृद्धि करना / बढ़ जाना
➡ शब्द के दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
25. चिड़िया चुग गई खेत, बाग़-बगिचे घूम।
अर्थ:
-
चिड़िया = पक्षी
-
चिड़िया = खेत/भूमि का छोटा हिस्सा
➡ एक शब्द, दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
26. धीरे-धीरे धूप की टपटप, सर्दी का मौसम बनता है।
अर्थ:
-
सर्दी = ठंड
-
सर्दी = संयम, शांति
➡ दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
27. दिल तोड़ा, इसकी सजा, आज भुगत रहा है।
अर्थ:
-
सजा = दंड, सज़ा
-
सजा = सजाना / सुसज्जित करना
➡ एक शब्द से दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
28. अबकी बार, मोदी सरकार। अबकी बार, विकास का संकल्प।
अर्थ:
-
अबकी बार = इस बार
-
अबकी बार = फिर से
➡ दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
29. वैभव से शोभित नगर, जलधि में कई चमकती नाव।
अर्थ:
-
नगर = शहर
-
नगर = नगरी (सुंदर स्थान / बस्ती)
➡ एक शब्द के दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
30. छाती से छुपाना, मातृभूमि का सम्मान करना।
अर्थ:
-
मातृभूमि = देश
-
मातृभूमि = धरती / भूमि
➡ दो अर्थ—श्लेष अलंकार।
31. मन में है विश्वास, आगे बढ़ेंगे हम। आगे बढ़ेंगे हम, मन में है विश्वास।
अर्थ:
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विश्वास = भरोसा
-
विश्वास = विश्वास करना (आस्था / श्रद्धा)
➡ दोनों अर्थों का प्रयोग — श्लेष अलंकार।