प्राचीन आर्य भाषा और विशेषताएँ

प्राचीन आर्य भाषा और विशेषताएँ ? 

(2.प्रारंभिक हिंदी की विशेषताएँ एवं हिंदी पूर्व की भाषाओँ में संक्षिप्त साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय)  

प्रश्न-1.प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?

अथवा

आर्य भाषा का वर्गीकरण करते हुए प्राचीन आर्य भाषा का संक्षिप्त परिचय दीजिए?

उत्तर-संसार में लगभग तीन हजार भाषाएँ हैं, जिनमें से कई भाषाओं का मूल स्रोत एक ही है। विद्वानों ने संसार की भाषाओं को सात परिवारों में बाँटा है। बोलने वालों की संख्या के हिसाब से ‘भारोपीय परिवार’ सबसे बड़ा है। भारत से लेकर यूरोप तक विस्तार होने कारण ही इसे भारोपीय परिवार कहते हैं। इसी भाषा परिवार से भारत, ईरानी और यूरोपीय भाषाओं का विकास हुआ है। इसे ही आर्य परिवार कहा जाता है।

आर्य भाषा को बोलने वाले लोग किसी युग में एक ही स्थान पर रहा करते थे। बाद में सभी अलग-अलग क्षेत्रों में चले गए। उनमें से एक शाखा भारत में तथा दूसरी शाखा यूरोप चली गई।

हिंदी भाषा का विकास भारतीय आर्य भाषा के तीसरे चरण में आधुनिक भारतीय भाषाओं के साथ हुआ है। भारोपीय परिवार का वर्गीकरण इस प्रकार से है-

भारोपीय परिवार
   शतम् वर्ग
केंटुम वर्ग 
दरदी/कश्मीरी
भारतीय आर्य भाषा
ईरानी

 

(i) प्राचीन भारतीय आर्य भाषा (वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत)

(ii) मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा (पालि, प्राकृत, अपभ्रंश)

(iii) आधुनिक भारतीय आर्य भाषा (पंजाबी, सिन्धी, राजस्थानी आदि)

भारतीय हिंदी भाषा का विकास भारतीय आर्य भाषा के तीसरे चरण में आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के उदय के साथ हुआ है। हिंदी भाषा के विकास का अध्ययन भारतीय आर्य भाषाओं के साथ कर सकते हैं। मूल रूप से हिंदी का इतिहास वैदिक काल से प्रारम्भ होता है। अतः भारत की आर्य भाषाओं में संस्कृत सबसे प्राचीन है। इसकी उतराधिकारिणी हिंदी है।

भारतीय आर्यभाषाओं को सामान्य रूप से तीन कालों में बाँटा किया गया है-

(i) प्राचीन भारतीय आर्य भाषा (1500 ई.पू. 500 ई.पू. तक)

(ii) मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा (500 ई.पू. -1000 ई. तक)

(iii) आधुनिक भारतीय आर्य भाषा (1000 ई. से अब तक)

(i) प्राचीन भारतीय आर्यभाषा काल-

(क) वैदिक भाषा-

वैदिक भाषा ही मूल प्राचीन भारतीय आर्य भाषा है। इसे प्राचीन हिंदी भी कहते हैं। चारो वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद इसी काल की रचनाएँ हैं। इनमें भाषा का एक रूप नहीं है। ऋग्वेद संस्कृत का प्राचीनतम ग्रंथ है। इस प्रकार वैदिक भाषा ही मूल भारतीय आर्य-भाषा है।   

(ख) लौकिक भाषा-

लौकिक संस्कृत वैदिक संस्कृत से विकसित हुई है। इसे देवभाषा कहते हैं। वैसे लौकिक संस्कृत का विकास पाणिनि के समय से माना जाता है। इस काल में संस्कृत बोल-चाल की भाषा थी। संस्कृत बोलने पर लोग गर्व का अनुभव करते थे। लौकिक संस्कृत में उच्चकोटि का साहित्य रचा गया है। लौकिक संस्कृत में रामायण, महाभारत आदि लिखे गए। इस काल की भाषा योगात्मक थी, शब्दों में धातु रूप सुरक्षित थे, भाषा संगीतात्मक थी, पदों का स्थान निश्चित नहीं था। शब्द भंडार में तत्सम शब्दों की अधिकता थी। विद्वान श्लेगेज के अनुसार- “संसार की भाषाओं में कोई भाषा इतनी पूर्ण और उन्नत नहीं है, जितनी कि संस्कृत भाषा”। संस्कृत का साहित्य विश्वविख्यात है। पाणिनि और पतंजलि को संस्कृत व्याकरण के मुनि की संज्ञा दी जाती है।

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1.वाक्यों में शब्दों का स्थान निश्चित नहीं था।

2.लौकिक संस्कृत में आर्यों के प्रभाव के कारण नए शब्दों का आगमन हुआ।

3.लौकिक संस्कृत में नियबद्धता दिखाई देती है।

4.इसमें तीन लिंग और तीन वचन थे।

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डॉ. अजीत भारती

हिंदी साहित्य का इतिहास 

By hindi Bharti

Dr.Ajeet Bhartee M.A.hindi M.phile (hindi) P.hd.(hindi) CTET

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