हिंदी साहित्य भाग 2

हिंदी साहित्य भाग 2

हिंदी साहित्य भाग 2-?


Hindi Sahitya ke Itihas ke likhane ki prampra 

  • हिंदी साहित्य के इतिहास के लेखन की शुरुआत 19वीं शताब्दी से माना जाता है।  लेखन का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

1- गार्सा-दा-तासी(फ़्रांस)-

  • ये फ़्रांस के विद्द्वान थे।
  • इन्होंने ‘इस्त्वार द ला लितरेत्यूर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी’ नाम से फ्रेंच भाषा में हिंदी साहित्य का पहला इतिहास लिखा।
  • इसका प्रथम भाग 1839 ई. में और दूसरा भाग 1847 ई. में प्रकाशित हुआ था।
  • इनके ग्रंथ में हिंदी और उर्दू के अनेक कवियों का विवरण वर्णानुक्रम के अनुसार किया गया।
  • इसमें काल विभाजन का कोई प्रयास नहीं किया गया है।
  • इसमें न तो रचनाकारों का वर्गीकरण है और न ही कोई विश्लेषण किया गया है।

 

2- शिवसिंह सेंगर-

  • इन्होंने ‘शिवसिंह सरोज’ के नाम से हिंदी साहित्य का ग्रंथ सन् 1883 ई. लिखा था।
  • इस ग्रंथ में लगभग एक हजार कवियों का जीवन–चरित, उनकी साहित्यिक कृतियाँ एवं कविता के उदाहरण दिए हैं।
  • उनके ग्रन्थ में कवियों का रचनाकाल और जन्मकाल भी दिया है।
  • उन्होंने कविता संबंधी जानकारी को एक स्थान पर एकत्र किया है।

 

3- जॉर्ज ग्रियर्सन-

  • इन्होंने ‘द मॉर्डन वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ़ हिंदुस्तान’ नाम से हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा।
  • इस ग्रंथ का प्रकाशन एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की पत्रिका के विशेषांक के रूप सन् 1888 ई. में करवाया था।
  • इसे इतिहास ग्रंथ में पहली बार कवियों और लेखकों को कालक्रम से वर्गीकृत किया गया है।
  • इन्होंने ग्रंथ में केवल हिंदी कवियों को स्थान दिया।
  • उन्होंने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश कवियों को   हिंदी की परिधि से निकाल दिया था।
  • ग्रियर्सन का यह ग्रंथ अंग्रेजी भाषा में लिखा गया था।
  • उन्होंने इसे 11 विभिन्न अद्ध्यायों में विभक्त किया है।
  • ग्रियर्सन ने ही सबसे पहले अपने इस इतिहास में भक्तिकाल को हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण उपलब्धि बताते हुए इसे हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग माना।

 

4- मिश्र बंधु-

  • मिश्र बंधुओं ने ‘मिश्र बंधु विनोद’ को चार भागों में लिखा है।
  • प्रथम तीन भागों का प्रकाशन 1913 ई. में और चौथा प्रकाशन सन् 1914 ई. में हुआ था।
  • उन्होंने पूरे काल को 8 खंडों में विभक्त किया है।
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास में ये बात स्वीकारी है कि “रीतिकाल के कवियों के परिचय लिखने में मैंने प्रायः उक्त ग्रंथ (मिश्र बन्धु विनोद) से ही विवरण लिया है।

 

5-आचार्य रामचंद्र शुक्ल-

  • इन्होंने सन् 1929 ई. में ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ नामक ग्रन्थ लिखा।
  • पहले इसे शब्द सागर की भूमिका के रूप में लिखा गया था।
  • उन्होंने हिंदी साहित्य के 900 वर्षों के इतिहास को चार कालों में विभक्त कर नया नामकरण भी किया-वीरगाथाकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल एवं गद्यकाल आदि।

 

शुक्लजी ने भक्तिकाल को निर्गुण और सगुण को दो धाराओं में विभक्त कर पुनः उसे दो-दो उपविभागों बाँटा-

1-सगुण- रामभक्ति और कृष्ण भक्ति

2-निर्गुण- ज्ञानाश्रयी और प्रेमाश्रयी

  • उन्होंने रीतिकाल को रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त में विभक्त किया है।
  • शुक्लजी  ने कवियों के जीवन परिचय से ज्यादा उनकी रचनाओं के मूल्यांकन को महत्व दिया है।
  • उन्होंने 1000 कवियों को अपने इतिहास में स्थान दिया है।

6- डॉ. राम कुमार वर्मा-

  • इनके ग्रंथ का नाम है ‘हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास’ जिसका प्रकाशन 1938 ई. हुआ।
  • इन्होंने वीरगाथा काल को चारण काल माना है, इससे पूर्व के साहित्य को संधिकाल कहा है।
  • ये अपभ्रंश के कवि ‘स्वयंभू’ को हिंदी का पहला कवि मानते हैं।

7-आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी-

  • उन्होंने कबीर की अवहेलना करने वालों मुंहतोड़ जवाब दिया है।
  • ये शुक्लजी के अनेक निष्कर्षों से असहमत थे।

 

8- हिंदी साहित्य का वृहत् इतिहास-

  • नगरी प्रचारिणी सभा, काशी ने हिंदी साहित्य के इतित्हस को ‘हिंदी साहित्य का वृहत् इतिहास’ के नाम से 16 खण्डों में प्रकाशित किया था।
  • इसके 6वें भाग ‘रीतिकाल’ का संपादन डॉ. नगेन्द्र ने किया था। उन्होंने 10वें(छायावाद) और 15वें(आंतर हिंदी भारती साहित्य) भाग का भी सम्पादन किया था।

डॉ. अजीत भारती 

By hindi Bharti

Dr.Ajeet Bhartee M.A.hindi M.phile (hindi) P.hd.(hindi) CTET

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