हिंदी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय
हिंदी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय? इसके अंतर्गत
बी.ए.(प्रथम वर्ष)(प्रथम सेमेस्टर) हिंदी (हिंदी काव्य)
प्रश्न-.हिंदी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए?
उत्तर-हिंदी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का परिचय-
हिंदी विकास के अंतर्गत हिंदी से पूर्व प्रचिलित भाषाओं में पालि, प्राकृत तथा अपभ्रंश आती हैं। हिंदी की विकास की परम्परा कुछ इस प्रकार मानी जाती है-
वैदिक संस्कृत > लौकिक संस्कृत > पालि > प्राकृत > अपभ्रंश > अवहट्ट > हिंदी
हिंदी भाषा का उद्भव अथवा उत्पत्ति अपभ्रंश भाषा से हुई थी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ‘प्राकृत की अंतिम अवस्था अपभ्रंश से ही हिंदी साहित्य का अविर्भाव स्वीकार किया जाता है’। अतः हिंदी के सम्पूर्ण अध्ययन के लिए हिंदी पूर्व की भाषाओं में शामिल साहित्य परम्परा को जानना बहुत ही आवश्यक है।
भारतीय आर्य भाषा के मध्ययुग में कई प्रादेशिक भाषाएँ चलन में आ चुकी थीं, इनका साधारण नाम प्राकृत या प्राकृतें था। इन भाषाओं में लिखे गए ग्रंथों को सामूहिक रूप से प्राकृत साहित्य कहा जाने लगा।
भाषा विद्वानों द्वारा भारतीय आर्य भाषा को तीन कालखंडों में विभजित किया गया है-
(1) प्राचीन भारतीय आर्यभाषा-(1500 ई. पू.-500 ई.पू. तक) इस काल में वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत दो भाषाएँ थीं।
(2) मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा- (500 ई.पू.-1000 ई. तक माना जाता है) इस काल में पालि, प्राकृत और अपभ्रंश तीन भाषाएँ थीं।
(3) अर्वाचीन अथवा आधुनिक भारतीय आर्य भाषा-(1000 ई. से अब माना जाता है) इसके अंतर्गत हिंदी और हिंदीतर(क्षेत्रीय) भाषाएँ आती हैं।
इस प्रकार मध्य भारतीय आर्य भाषा के अंतर्गत पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाएँ आती हैं।
1-पालि भाषा-
पालि को बुद्ध की भाषा कहा जाता है।
पूरा बौद्ध साहित्य इसी भाषा में लिखा गया है। इसका समय 500 ई. पू. – 100 ई. तक माना जाता है। बुद्ध वचनों को जिन पंक्तियों में कहा गया है, उसे पालि कहते हैं। पालि साहित्य में बौद्ध धर्म से संबंधित तीन प्रमुख ग्रंथ लिखे गए हैं-सुत्तपिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक।
2- प्राकृत साहित्य-
जैन साहित्य की रचना प्राकृत भाषा में हुई है। श्रवण महावीर ने प्राकृत भाषा को अपनाया था। उनके अपने उपदेशों को मागधी और अर्द्धमागधी कहा गया है। ‘प्राकृत प्रकाश’ नामक व्याकरण ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखा गया था। हेमचन्द्र ने 12वीं सदी में ‘प्राकृत व्याकरण’ इसी भाषा में लिखा है। प्राकृत भाषा के पाँच प्रमुख प्रकार हैं-शौरसेनी, पैशाची, महाराष्ट्रीय, अर्द्धमागधी, मागधी प्राकृत।
3-अपभ्रंश साहित्य-
अपभ्रंश का अर्थ है- बिगड़ा हुआ। इसे पुरानी हिंदी भी कहा जाता है। इसमें पर्याप्त साहित्यिक रचना हुई है। इसका समय 500 ई. से लेकर 1000 ई. तक माना गया है।
भारत में क्षेत्रीय रूपान्तर प्रचलित थे, जिनसे आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का कालान्तर में विकास हुआ। इनका विवरण इस प्रकार से है-
अपभ्रंश का क्षेत्रीय रूप विकसित होने वाली आर्य भाषाएँ
1-शौसेनी अपभ्रंश- पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, गुजराती
2-पैशाची अपभ्रंश- पंजाबी, लहंदा
3-ब्राचड़ अपभ्रंश- सिंधी
4-खस अपभ्रंश- पहाड़ी
5-महाराष्ट्रीय अपभ्रंश- मराठी
6-अर्द्धमागधी अपभ्रंश- पूर्वी हिंदी
7-मागधी अपभ्रंश- बिहारी, उड़िया, बंगला, असमिया
इससे सिद्ध होता है कि अपभ्रंश से ही भारतीय आधुनिक आर्य भाषाओ का विकास हुआ है।
अपभ्रंश साहित्य में अपभ्रंश का बाल्मीकि कवि ‘स्वयंभू’ को कहा गया है। जिनकी पाउम चरिउ, रिटठणेमि चरिउ और स्यंभू छंद है। अन्य प्रमुख अपभ्रंश अथवा पुरानी हिंदी के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ इस प्रकार से हैं-
अपभ्रंश कवि रचना का नाम
सरहपा मुक्तक रचनाएँ
देवसेन श्रावकाचार
पुष्पदंत महापुराण, जसहर चरिउ
धनपाल भाविसयत्तकहा
अब्दुर्रहमान सन्देश रासक
जिनिदत्त सुरि उपदेश रसायन रास
जोइंदु परमात्म प्रकाश, योगसर,
राम सिंह पाहुड दोहा
हेमचन्द्र शब्दानुशासन
विद्यापति कीर्तिलता, कीर्तिपताका
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार आदिकाल में अपभ्रंश की चार साहित्यिक रचनाएँ- विजपाल रासो, हम्मीर रासो, कीर्तिलता, कीर्तिपताका आदि भी महत्पूर्ण हैं।
=====X=====X=====X=====X=====X=
अपभ्रंश भाषा –https://hindibharti.in/wp-admin/post.php?post=3594&action=edit
डॉ. अजीत भारती