हिंदी कहानी का उद्भव और विकास
हिंदी कहानी का उद्भव और विकास?
प्रश्न-.हिंदी कहानी का उद्भव और विकास पर निबंध लिखिए।
अथवा
प्रेमचंद पूर्व, प्रेमचंदयुगीन, प्रेमचंदोत्तर कहानी, विविध कहानी आन्दोलन, नईं कहानी, साठोत्तरी कहानी, समकालीन कहानी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर- हिंदी गद्य विधाओं में ‘कहानी’ मजबूत विधा बनकर विकसित हुई। आज अन्य विधाओं की अपेक्षा लोग सबसे अधिक कहानी पढ़ते हैं इसलिए पत्र-पत्रिकाओं में कहानी की माँग अधिक रहती है। बीते 100 सालों में हिंदी कहानी का विकास बहुत हुआ है। अज्ञेय के अनुसार “कहानी एक सूक्ष्मदर्शी यंत्र है जिसके नीचे मानवीय अस्तित्व के दृश्य खुलते है”।
हिंदी कहानी की विकास यात्रा लगभग 1900 ई. से शुरू हो गई थी। क्योंकि इससे पहले हिंदी में कहानी जैसी विधा नहीं थी। हिंदी की पहली कहानी कौन है ? इस पर विद्वानों के अलग-अलग विचार हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ‘इंदुमती’ को हिंदी की पहली मौलिक कहानी मानते हैं। जिसका प्रकाशन 1900 ई. में ‘सरस्वती’ पत्रिका में हुआ था? कुछ विद्वान बंग महिला की ‘दुलाई वाली’ को और कुछ विद्वान माधवराव सप्रे की ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ को हिंदी की पहली कहानी मानते हैं।
हिंदी कहानी के विकास को प्रेमचंद को आधार मानकर चार भागों में बाँटा गया है-
1.प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी
2.प्रेमचंदयुगीन हिंदी कहानी
3.प्रेमचंदोत्तर हिंदी कहानी
4.नई कहानी
1.प्रेमचंद पूर्व हिंदी कहानी(सन् 1900 ई. से 1915 ई.)-
इस काल में कहानी का विकास हो रहा था। इस समय नए-नए विषयों पर कहानियाँ लिखी जा रही थीं। प्रेमचंद से पहले कुछ कहानियाँ लिखीं गई थीं जिनमें “माधवप्रसाद मिश्र” की ‘मन की चंचलता’, “लाला भगवानदीन” की ‘प्लेग की चुड़ैल,’ “विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक” की ‘रक्षाबंधन’, “वृन्दावन लाल वर्मा” की ‘राखीबन्द भाई’ और “ज्वालादत्त शर्मा” की ‘मिलन’ आदि हैं। इन कहानियों पर भारतीय और विदेशी भाषओं का प्रभाव है। इनके विषय प्रेम, समाज सुधार, नीति उपदेश हैं। इस काल की सर्वश्रेष्ठ कहानी ‘उसने कहा था’ है, जिसके लेखक “चंद्रधर शर्मा गुलेरी” हैं। जिसका प्रकशन सन् 1915 ई. में ‘सरस्वती’ पत्रिका में हुआ था।
हिंदी कहानी अभी बाल अवस्था में थी। प्रेमचंद के आने से पहले हिंदी कहानी का मजबूत रूप सामने नहीं आया था। इस काल में कहानी अपने मूल स्वरुप में धीरे-धीरे आ रही थी।
2.प्रेमचंदयुगीन हिंदी कहानी(सन् 1916 ई. से 1936 ई.)-
प्रेमचंद इस काल के प्रवर्तक कहानीकार हैं। उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखी थीं। पहले ये ‘नवाब राय’ के नाम से ‘उर्दू’ में लिखते थे। उनकी पहली हिंदी कहानी ‘पंच परमेश्वर’ सन् 1916 ई. में और अंतिम कहानी ‘कफ़न’ 1936 ई. लिखी गई थी। प्रेमचंद की पूरी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ के नाम से ‘आठ खण्डों’ में प्रकाशित हैं। प्रेमचंद की अधिकांश कहानियों के विषय ‘ग्रामीण जीवन’ से लिए गए हैं। लेकिन कुछ कहानियों के विषय ‘कस्बे और स्कूल-कॉलेज’ से संबंधित हैं। इनकी कहानियों के ‘पात्र’ हर वर्ग, जाति और धर्म के हैं। पंच परमेश्वर, नमक दरोगा, ईदगाह, परीक्षा, पूस की रात, बूढी काकी, सवा शेर गेहूँ, ठाकुर का कुआँ, बड़े भाई साहब, कफन आदि प्रेमचंद की प्रमुख कहानियाँ हैं।
यह काल कहानी का उत्तम काल था। प्रेमचंद के समकालीन कहानीकारों में सुदर्शन, विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, चतुरसेन शास्त्री, बेचन शर्मा, भगवती प्रसाद, जैनेन्द्र, अज्ञेय, इलाचंद्र जोशी, यशपाल आदि हैं। “कौशिक” की टाई, रक्षाबंधन, विधवा, “सुदर्शन” की हार की जीत, कमल की बेटी, “जयशंकर” की छाया, आकाशदीप, इंद्रजाल, ममता और आंधी, “पाण्डेय बेचन वर्मा” की इन्द्रधनुष, चाकलेट, दोजख की आग आदि प्रमुख कहानियाँ हैं।
अंत में यही कह सकते हैं कि इस काल की कहानियों में सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक, समस्याओं का चित्रण अधिक हुआ है।
3.प्रेमचंदोत्तर हिंदी कहानी(सन् 1936 ई. से 1950 ई.)-
प्रेमचंदोत्तर का मतलब है प्रेमचंद के बाद लिखी गईं कहानियां। इस समय कहानी का विकास कई दिशाओंमें हुआ है। जैसे ‘प्रगतिवादी कहानियाँ’ जिसके प्रमुख कहानीकार “यशपाल” हैं। उनकी प्रमुख कहानियाँ पिंजड़े जी उड़ान, फूलों का कुर्ता, वो दुनिया आदि। मनोविश्लेषणवादी कहानी लेखकों में ‘अज्ञेय’ ‘इलाचंद्र जोशी एवं जैनेन्द्र के नाम प्रमुख हैं। ‘अज्ञेय’ की प्रमुख कहानियाँ रोज, खितनी बाबू, पुलिस की सीटी, गैंग्रीन। ‘जैनेन्द्र’ की प्रमुख कहानियाँ परख, ग्रामोफोन, एक रात, पानवाला आदि। “इलाचंद्र जोशी” की प्रमुख कहानियाँ रोगी, मिस्त्री, प्रेत्तामा आदि।
कुछ कहानीकारों ने यथार्थवादी कहानियाँ लिखी हैं जिनमें चन्द्र गुप्त विद्यालंकार, रामप्रसाद पहाड़ी, देवीदयाल चतुर्वेदी, भगवतीचरण वर्मा, रामवृक्ष बेनीपुरी, विष्णु प्रभाकर, राधाकृष्ण आदि हैं। कुछ कहानीकारों ने युद्ध, क्रांति, शांति आदि विषयों पर भी कहानियाँ लिखी हैं। “प्रभाकर माचवे” ने द्वितीय विश्व युद्ध से संबंधित और “श्रीराम शर्मा” ने ‘शिकार कथाओं’ पर कहानियाँ लिखी हैं। अंत में ये कहा जा सकता है कि प्रेमचंदोत्तर कहानी में मनोविश्लेषण की अधिकता रही है।
4.नई कहानी(सन् 1950 के बाद)-
सन् 1950 ई. के बाद की कहानी के विषय पहले की कहानियों से अलग थे। पुराने कहानीकार सामाजिक, नैतिकतावादी और मनोविश्लेषणवादी पर अधिक कहानियाँ लिखी हैं। लेकिन नए कहानीकारों ने जीवन के यथार्थ रूप को लेकर लिखा है। नया कहानीकार अपने अनुभव की सच्चाई को लिखकर कहानी लिखता है। वह कथानक को महत्व नहीं देता है।
स्वतंत्रता के बाद भूख, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि समस्याओं ने कहानियों को प्रभावित किया है। अतः अब कहानियों के विषय जीवन की वास्तविक समस्याओं से जुड़ी दिखाई देती हैं।
नई कहानी को निम्न वर्गों में बाँट सकते हैं-
1.ग्रामीण अंचल की कहानियाँ
2.व्यंग्य प्रधान कहानियाँ
3.यथार्थवादी कहानियाँ
4.नगर बोध की कहानियाँ
5.यौन समस्याओं का चित्रण करने वाली कहानियाँ
नई कहानी को समृद्ध करने में हिंदी कथा लेखिकाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी, शिवानी, ममता कालिया, मृदुला गर्ग एवं मालती जोशी जैसी आदि कहानी लेखिकाओं ने पति-पत्नी और स्त्री-पुरुष संबंधों को अपनी कहानियों में शामिल किया है।
कहानी आन्दोलन-स्वतंत्रता के बाद कहनी लेखन में कई कहानी आन्दोलन हुए। प्रमुख आन्दोलन इस प्रकार हैं-
नई कहानी-
नई कहानी की शुरुआत सन् 1950 ई. के आसपास मानी जाती है। नए कहानीकारों में राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, मन्नू भंडारी, धर्मवीर भारती, अमरकांत, श्रीकांत वर्मा, आदि हैं।
सचेतन कहानी-
सन् 1964 ई. के आसपास महीप सिंह ने इसका प्रवर्तन किया था। सचेतन कहानी में वैचारिकता को विशेष महत्व दिया गया है। इस वर्ग के कहानीकार हैं- महीप सिंह, रामकुमार, बलराज पंडित, हिमांशु जोशी, देवेन्द्र सत्यार्थी, सुदर्शन चोपड़ा आदि।
अचेतन कहानी-
हिंदी साहित्य की वह कथा-धारा है जिसमें मनुष्य के अंदर छिपे हुए मनोवैज्ञानिक भाव, अवचेतन-चेतन की क्रिया, दबी इच्छाएँ और आंतरिक संघर्ष को केंद्र बनाया जाता है। इस कहानी में बाहरी घटनाओं की अपेक्षा आंतरिक मनोस्थिति, स्वप्न, स्मृति और विचारों का विश्लेषण अधिक होता है।
साठोत्तरी कहानी-
साठोत्तरी हिंदी कहानी उन कहानियों को कहा जाता है जो सन् 1960 के बाद लिखी गईं। यह कहानियाँ उस समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और व्यक्तिगत यथार्थ को एक नए दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं।
अकहानी-
हिंदी कहानी का वह आधुनिक रूप जिसमें पारंपरिक कहानी की संरचना को तोड़कर एक नया कथात्मक प्रयोग किया गया है।
समानांतर कहानी-
हिंदी साहित्य में वह कथा-धारा जो समाज में हो रहे शोषण, वर्ग संघर्ष, असमानता और सामाजिक अन्याय के खिलाफ एक जनवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। जो समाज के हाशिए पर खड़े व्यक्ति की आवाज़ को कथा के केंद्र में लाती है।
समकालीन कहानी-
हिंदी साहित्य की वह कथा-धारा जो आज के समय के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और तकनीकी बदलाओं को केंद्र में रखकर लिखी जाती है। समकालीन कहानियाँ आज के मनुष्य की सही समस्याओं और बदलते समाज के नए स्वरूप को यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करती हैं।
जनवादी कहानी-
“जनवादी” का अर्थ है ऐसी कहानियाँ जो सामान्य जनता के पक्ष में खड़ी हों तथा शोषण, असमानता और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाएँ।
यह धारा प्रगतिशील आंदोलन समाज के वंचित वर्ग, मजदूर, किसान, महिला, दलित, अल्पसंख्यक तथा संघर्षशील मनुष्य को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाती है।
सक्रिय कहानी-
हिंदी कहानी की एक ऐसी आधुनिक प्रवृत्ति है जिसमें कहानी पाठक को सोचने, जागने और समाज में बदलाव के लिए प्रेरित करने का एक साधन बनती है।
हिंदी कहानी का निष्कर्ष-
आज हिंदी कहानी बहुत लोकप्रिय है। आज हिंदी कहानी केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि मानव जीवन का गहन विश्लेषण, समाज का दस्तावेज और परिवर्तन का प्रभावी माध्यम बन गई है। यह हर वर्ग की आवाज बनकर सामने आई है-चाहे वह किसान हो, मजदूर, महिला, दलित, बालक, वृद्ध या प्रवासी।
अतः हिंदी कहानी का निष्कर्ष यह है कि कथा साहित्य न केवल पाठक को सोचने पर मजबूर करता है, बल्कि उसे संवेदनशील, जागरूक और मानवीय मूल्य आधारित जीवन की ओर प्रेरित करता है। हिंदी कहानी की शक्ति उसकी जीवंतता, जन-सरोकार और मानवीय संवेदना में निहित है।
अतः यह कहा जा सकता है कि कहानी का भविष्य बहुत उज्ज्वल है।