रैदास के पद का सारांश
रैदास के पद का सारांश?
सीबीएस बोर्ड/ कक्षा-9/ विषय-हिंदी-ब/ स्पर्श भाग-1
पाठ का नाम रैदास के पद
इस पाठ का सार अथवा (summary)
यहाँ पर रैदास के दो पद लिए गए हैं।
पहले पद में कवि ने भक्त की अवस्था का वर्णन करते हुए कहा है कि हे प्रभु! आपके नाम की रट हमारे मन में लग गई है, वह कैसे छूट सकती है? मैं आपका बहुत बड़ा भक्त बन गया हूँ। हमारा और तुम्हारा वही संबंध बन गया है जो चन्दन और पानी का होता है।
यदि प्रभु तुम चंदन हो तो मैं पानी हूँ। जिस प्रकार चंदन के सम्पर्क में पानी के आने से उसकी सुगंध पानी की एक बूँद-बूँद में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भक्ति भक्त के अंग-अंग में समा जाती है।
हे प्रभु! आप बादल हो तो मैं मोर के समान हूँ, जो बादल को देखते ही नाचने लगता है।
हे प्रभु! तुम चाँद हो तो मैं उस चकोर पक्षी की तरह हूँ जो अपनी पलकों को बंद किये बिना चाँद को देखता रहता है।
हे प्रभु! तुम दीपक हो, तो मैं तुम्हारी बाती हूँ जो दिन रात तुम्हारे प्रेम में जलता रहता है।
रैदास के पद
कवि भगवान् से कहता है कि हे प्रभु! यदि तुम मोती हो तो मैं उस धागे के समान हूँ जिसमें मोतियाँ पिरोई जाती हैं। मेरा तन मन तुम्हारे कारण चमकता है। हमारा और तुम्हारा मिलन सोने और सुहागे की तरह पवित्र है। जिस प्रकार से सोना, सुहाग के सम्पर्क में आने पर खरा हो जाता है, उसी प्रकार से मैं तुम्हारी शरण में आने से शुद्ध हो गया हूँ।
रविदास जी कहते हैं कि हे प्रभु! तुम स्वामी हो, मैं तुम्हारा दास हूँ। तुम्हारे चरणों में इसी प्रकार की भक्ति करता हूँ।
दूसरे पद में कवि भगवान की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान गरीबों और दीन-दुःखियों पर दया करने वाले हैं, उनके माथे पर सजा हुआ मुकुट उनकी शोभा को बढ़ा रहा है। आगे वे कहते हैं कि भगवान में इतनी शक्ति है कि वे कुछ भी कर सकते हैं और उनके बिना कोई भी काम संभव नहीं है।
रैदास के पद
भगवान के छूने से अछूत मनुष्यों का भी कल्याण हो जाता है क्योंकि भगवान अपनी कृपा से किसी नीच जाति के मनुष्य को भी ऊँचा बना सकते हैं। कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस भगवान ने नामदेव, कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार किया था वही बाकी लोगों का भी उद्धार करेंगे। आगे वे कहते हैं कि हे! सज्जन व्यक्तियों तुम सब सुनो उस हरि के द्वारा इस संसार में सब कुछ संभव है।
इसी के अंतर्गत पाठ रैदास के पद का सार समाप्त हुआ।
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