प्रयोगवाद की विशेषताएँ
प्रयोगवाद की विशेषताएँ?
परिचय- प्रयोगवाद का प्रारम्भ ‘अज्ञेय’ के सन् 1943 ई. में तारसप्तक (प्रथम) के प्रकाशन से माना जाता है। सन् 1943 से 1953 ई. तक का समय प्रयोगवाद के नाम से जाना जाता है। प्रयोगवादी कवि ‘प्रयोग’ करने में विश्वास करते हैं। अज्ञेय ने ‘प्रयोग’ को साधन मानते हुए लिखा है- “प्रयोग अपने आप में इष्ट नहीं है, वरन् वह साधन है।” इस युग में भाव एवं शैली की दृष्टि से जो नये-नये प्रयोग किए गए हैं, उसे प्रयोगवाद का नाम दिया गया है।
1-नवीन उपमानों का प्रयोग
नई कविता में नयापन है। इस युग के कवियों ने पुराने और प्रचलित उपमानों के स्थान पर नए उपमानों का प्रयोग किया है। प्रयोगवादी कवियों के अनुसार कविता के पुराने उपमान मैले हो गए हैं- पुराने पड़ गए हैं।
उदाहरण- मेरे सपने ऐसे टूटे जैसे टूटा कोई भुंजा पापड़।
2- बुद्धिवाद की प्रधानता
परंपरागत कविता में जहाँ भावना की प्रधानता है, वहीँ प्रयोगवाद में बौद्धिकता की। प्रयोगवादी कवियों ने अपनी रचनाओं में बुद्धि तत्व को अधिक महत्व दिया है। जिसके कारण वर्णन करने में कठिनाई आती है।
3-ईश्वर के प्रति अनास्था
इस युग के भी कवियों ने ईश्वर से अधिक मनुष्य की शक्ति को महत्व दिया है।
4- अहं की भावना
प्रयोगवादी कवि अपने अहं को ज्यादा महत्व देते हैं। इस युग के कवियों ने अति यथार्थता के साथ विश्लेषण किया है।
5- निराशावाद की प्रधानता
इस युग के कवियों ने आधुनिक मानव के मन की यातना, घुटन, हताशा, कुंठा और निराशा वादी भावना को अपनी कविता का विषय बनाया है।
6- प्राचीन रूढ़ियों का विरोध
प्रयोगवादी कवियों ने प्राचीन परम्परागत रूढ़ियों के प्रति विद्रोह की भावना व्यक्त की है। वह शोषण एवं अंधविश्वासों से मुक्त नए समाज की स्थापना करना चाहते हैं।
7-लघु मानवतावाद की प्रतिष्ठा
इन कवियों ने मानव-जीवन की छोटी से छोटी वस्तु को अपनी कविता का विषय बनाया है, उन्होंने चूड़ी का टुकड़ा, फटी ओढ़नी, चाय की प्याली और गरम पकौड़े आदि छोटी चीजों को भी कविता का विषय बनाया।
8-अस्पष्ट एवं दुरूह प्रतीकों का प्रयोग
प्रयोगवादी कवियों ने अपनी कवितों में अस्पष्ट एवं कठिन प्रतीकों का प्रयोग किया है। उदाहरण-
मैं
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और
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तुम
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9-मुक्त छंद का प्रयोग
इस युग के कवियों ने अपनी रचनाओं के लिए मुक्तक छंदों का प्रयोग किया है अतुकांत कविताओं के प्रयोग से भावों को एक साथ ग्रहण करने में कठिनाई का अनुभव स्थान -स्थान पर होता है।
10-व्यंग्य की प्रधानता
इस युग के कवियों ने अपनी रचनाओं में व्यक्ति एवं समाज दोनों ही स्थितियों पर करारे व्यंग्य प्रहार किए गए हैं।
उदाहरण- सांप!
तुम सभ्य नहीं हुए,
यह तो बताओ तुमने
डसना कहाँ से सीखा।
कवि एवं रचनाएँ
1-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’- असाध्य वीणा, हरी घास पर क्षण
2-गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’- चाँद का मुंह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल
3-गिरिजा कुमार माथुर- मंजीर, नाश और निर्माण
4-धर्मवीर भारतीय – अँधा युग, कनुप्रिया, ठंडा लोहा
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