अट नहीं रही है सार
अट नहीं रही है सार? आज हम कविता अट नहीं रही को सार (summary) के मध्यम से समझेंगे ।
पाठ-अट नहीं रही है- सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
पाठ का सार
इस कविता में कवि ने फागुन (होली) के माह के सौंदर्य का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि- फागुन माह की चमक कहीं भी समा नहीं रही है। तुम(फागुन) कहीं साँस लेते हो और खुशबू से सभी के घरों को भर देते हो। तुम पक्षियों को भी आकाश में उड़ने के लिए मजबूर कर देते हो, जिससे पूरे आसमान में पक्षियों के पंख ही पंख दिखाई देते हैं। मैं इस सुन्दर प्रकृति से अपनी आँख हटाता हूँ, तो हट ही नहीं रही है। पेड़-पौधों की डालियाँ पत्तों से लदी हैं। पत्तियाँ कहीं हरी हैं तो कहीं लाल । पेड़-पौधों में सुगंधित फूल लगे हुए हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अपने गले में फूलों की माला डाल रखी हो। चारो ओर जगह-जगह प्रकृति की सुंदरता फैली हुई है।
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डॉ. अजीत भारती