mata ka anchal summary

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 NCERT CBSE Class 10 विषय-हिंदी-अ कृतिका-2

पाठ-माता का अंचल-शिवपूजन सहाय

पाठ का सार


            ‘माता का अंचल’ एक वात्सल्य रस का पाठ है। इसमें लेखक ने अपने बचपन के समय के खेल-तमाशों, रुचियों-अरुचियों और शरारतों का सुन्दर वर्णन किया है। यह पाठ वात्सल्य प्रेम का एक अनूठा उदाहरण भी है। यह कहानी हमें बताती है कि एक छोटे  बच्चे को दुनिया की सारी खुशियां व सुरक्षा और शांति उसे सिर्फ माँ  के आँचल  में ही मिलती है।


 पार्ट-1

           पाठ का सार कुछ इस प्रकार है- लेखक शिवपूजन सहाय के बचपन का नाम ‘तारकेश्वरनाथ’ था। मगर घर में उन्हें ‘भोलानाथ’ कहकर बुलाया जाता था। भोलानाथ अपने पिता को ‘बाबूजी’ व माँ को ‘मइयाँ’ कहा करते थे। बचपन में भोलानाथ का अधिकतर समय अपने पिता के साथ ही गुजरता था। वो अपने पिता के साथ ही सोते, सुबह जल्दी उठकर, नहा-धोकर पूजा करने बैठ जाया करते थे।


 पार्ट-2

            लेखक अपने बाबूजी से अपने माथे पर तिलक लगाकर खूब खुश होते थे। जब बाबूजी रामायण पाठ करते थे तो लेखक उनकी बगल में बैठकर शीशे में अपना मुँह देखा करते थे। जब उनके पिताजी उनको देख लेते थे, तब वे शरमा जाते थे। उनकी इस बात पर उनके पिता भी हँस देते थे ।

       पूजा अर्चना करने के बाद पिताजी अपनी रामनामा बही पर हजार राम-नाम लिख देते थे। उसके बाद कागज के टुकड़ों पर 500 बार राम नाम लिखी कागज की पर्चियों को आटे की छोटी गोलियों में  रखकर अपने के कंधे पर  बैठकर गंगा जी के पास जाते थे। और वहाँ उन आटे की गोलियां मछलियों को खिला देते थे। कभी-कभी लेखक अपने बाबूजी के साथ कुश्ती भी लड़ते थे। पिताजी जानबूझकर हार जाते थे तो लेखक खूब खुश होते थे।


पार्ट-3

          जब वे अपने पिताजी के साथ घर में खाना खाते थे। तो भोलानाथ की माँ  उन्हें अनेक पक्षियों के नाम से निवाले बनाकर बड़े प्यार से खिलाती थी। भोलानाथ की माँ उनको बहुत लाड -प्यार करती थी। वह कभी उन्हें अपनी बाहों में भर लेती, तो कभी-कभी उन्हें जबरदस्ती पकड़ कर उनके सिर पर कड़वे तेल (सरसों का तेल) से मालिश कर देती थी। तो लेखक रोता था। इस पर बाबूजी भोलानाथ की माँ  से नाराज हो जाते थे। लेकिन उसकी  माँ उसके माथे पर बिंदी और चोटी बनाकर, फूलदार लट्टू बनाकर भोलानाथ को रंगीन कुर्ता व टोपी पहना कर उन्हें ‘कन्हैया’ जैसा सजा देती थी।

       जब वह अपने साथियों  के साथ मिल जाता था तब खूब मौजमस्ती करता था। इन तमाशों में तरह-तरह के नाटक शामिल होते थे। कभी चबूतरे का एक कोना ही उनका नाटक घर बन जाता तो, कभी बाबूजी की नहाने वाली चौकी को ही रंगमंच बना लेते थे। उस रंगमंच पर मिठाइयों की दुकान लगा लेते  जिसमें लड्डू, बताशे, जलेबियाँ  आदि सजा दिये जाते थे। और फिर जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के बने पैसों से बच्चे उन मिठाइयों को खरीदने का नाटक करते थे। भोलानाथ के पिताजी भी कभी-कभी वहाँ से खरीदारी कर लिया करते थे।


   पार्ट-4

               थोड़ी देर में ऐसे ही नाटक में कभी घरोंदा बना दिया जाता था जिसमें घर की पूरी सामग्री रखी हुई नजर आती थी। तो कभी-कभी बच्चे बारात का भी जुलूस निकालते थे। जिसमें तंबूरा और शहनाई भी बजाई जाती थी। दुल्हन को भी विदा कर लाया जाता था। जैसे ही बाबूजी दुल्हन का मुँह देखने पहुँचते, सब बच्चे हँसकर भाग जाते थे। लेखक के पिताजी भी बच्चों के खेलों में भाग लेकर उनका आनंद उठाते थे। बस इसी हँसी खुशी में भोलानाथ का पूरा बचपन मजे से बीत रहा था।

        एक दिन सारे बच्चे आम के बाग़ में खेल रहे थे। तभी आँधी के बाद जोर से बारिस हुई । जब बारिश बंद हुई तो वहाँ बहुत सारे बिच्छू निकल आए जिन्हें देखकर सारे बच्चे डर के मारे भागने लगे। संयोग से उन्हें रास्ते में बूढ़ा मूसन तिवारी मिल गया। भोलानाथ और उसके दोस्त बैजू ने उन्हें चिढ़ाया। फिर क्या था बैजू की देखा देखी सारे बच्चे मूसन तिवारी को चिढ़ाने लगे। मूसन तिवारी ने बच्चों को दौड़ा लिया। और उनका पीछा करते हुए  पाठशाला में पहुँच गए। मूसन तिवारी ने उनकी शिकायत गुरु जी से कर दी। गुरु जी ने बैजू और भोलानाथ को पकड़ लाने के लिए कहा। दोनों को पकड़कर स्कूल लाया जाता है। बैजू भाग जाता है।  और भोला नाथ की गुरूजी खबर लेते हैं ।


 पार्ट-5

               लेखक के पिताजी को जब पता चलता है, तो वे स्कूल जाते हैं। जैसे ही भोलानाथ ने अपने बाबूजी को देखा तो वो दौड़कर बाबूजी की गोद में चढ़ गए। और रोते-रोते उनका  कंधा अपने आंसुओं से गीला कर देते हैं। वे उसे खूब पुचकारते हैं। बाबूजी गुरूजी से मिनती कर भोलानाथ को घर लेकर चल देते हैं। रास्ते में उसे अपनी मित्र मंडली मिल जाती है। उनको देखते ही रोना भूलकर मित्र मंडली में शामिल हो जाता है। मित्र मंडली उस समय चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। भोलानाथ भी चिड़ियों को पकड़ने लगता है। चिड़ियाँ उनके हाथ नहीं आती हैं।

        अचानक सब एक टीले पर जाकर चूहों के बिल में पानी डालना शुरू कर देते हैं। तभी वहाँ से एक  सांप निकल आता है। सब बच्चे डर के मारे भागते हैं। कोई औंधा गिरता, कोई चित्त। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे । सभी गिरते-पड़ते जैसे-तैसे घर पहुँचते हैं। भोलानाथ दौड़ता हुआ आता है और घर में घुस जाता है। बाबूजी बरामदे में बैठकर हुक्का पी रहे थे। उन्होंने बुलाया लेकिन वह माता की गोद जाकर छिप जाता है। भोलानाथ अधिकतर समय अपने बाबूजी के साथ बिताता था, लेकिन उस समय बाबूजी के पास नहीं गया।


पार्ट-6

           बच्चे को काँपता हुआ देखकर माँ रोने लगती है और उसे चूमने लगती है। वह जल्दी हल्दी पीसकर घावों को पोछकर लगाती है। माँ उसे गले से लगा लेती है। बाबूजी उसे गोद लेने की कोशिश करते हैं परन्तु वह माँ का आंचल  नहीं छोड़ता है ।

धन्यवाद!


mata ka anchal summary

डॉ. अजीत भारती  

By hindi Bharti

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