kanyadan summary
kanyadan summary ? आज हम कविता कन्यादान का सार पढेंगे ।
पाठ-कन्यादान-ऋतुराज
पाठ का सार
जब बेटी विवाह के बाद अपने पति के साथ ससुराल जाती है तो जाने से पूर्व माँ उसे कुछ सीख देती है। उसी का यहाँ पर कवि ने माँ-बेटी के प्रसंग का मार्मिक चित्रण किया है। कन्यादान करते समय माँ का दुःख सच्चा था। उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो। लड़की अभी सायानी नहीं थी। वह बहुत ही भोलीभाली थी। वह सुख के बारे में तो जानती थी लेकिन दुःख के बारे में उसे अधिक ज्ञान नहीं था। वह अभी समाज को ठीक से नहीं जानती थी। अभी वह कल्पना की दुनिया में जीती थी।
माँ बेटी से कहती है कि पानी में झाँककर अपने चेहरे पर कभी मोहित न होना। आग रोटियाँ पकाने के लिए होती है, जलने के लिए नहीं। वस्त्र और आभूषण का लालच स्त्री को बंधन में जकड़ लेता है। जिसके कारण उससे घर के सारे काम करवाए जाते हैं। उसके लालच में कभी न आना। अंत में माँ कहती है-तुम लड़की की तरह सरल बनी रहना, लेकिन अपने ऊपर अत्याचार मत होने देना।
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डॉ. अजीत भारती