Dukh Ka Adhikar Class 9 summary

Dukh Ka Adhikar Class 9 summary? इसमें कहानी का सरल भाषा में सार दिया जा रहा है जो छत्रों के लिए उपयोगी साबित होगा ।

पाठ का सार(summary)

हमारे समाज में आज भी धनी व्यक्ति का आदर किया जाता और और गरीब लोगों को महत्व नहीं  नहीं दिया जाता है।

हमें उनके दुःख-तकलीफ से कोई मतलब नहीं होता है।

लेखक यशपाल द्वारा लिखी गई कहानी ‘दुःख का अधिकार’ इसी मानसिकता को प्रकट करती है। यह एक व्यंग्य रचना है।

इसमें इस बात का दुःख प्रकट किया गया है कि लोग गरीब के दुःख को दुःख ही नहीं समझते।

तो आइये इस कहानी को सारांश के माध्यम से समझते हैं।

पाठ का सार कुछ इस प्रकार से है-बाजार में एक बुढिया डलिया में खरबूजे रखकर बेच रही थी।

लेकिन कोई भी उसके खरबूजे खरीद नहीं रहा था।

वह कपड़े में मुँह छिपा कर फफक-फफककर रो रही थी।

पड़ोस की दुकानों पर बैठे लोग उसे घृणा की नज़रों से देख रहे थे।

लेखक की इच्छा हुई कि वह उसके पास जाकर उसकी तकलीफ को पूछे।

किन्तु लेखक अच्छी पोशाक पहने होने कारण उसके पास बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।

बाजार में खड़ा एक आदमी घृणा में थूकते हुए कहता है कि जवान लड़के के मरे हुए अभी कुछ दिन नहीं हुए और दुकान लगाकर बैठी है।

दूसरा व्यक्ति दाढ़ी खुजाते हुए उसकी नियत पर शक करता है।

उनमें से एक कहता है कि इन लोगों का ईमान-धर्म नहीं होता है, इनके लिए रोटी का टुकड़ा ही सब कुछ है।

परचून की दुकान चलाने वाला कहता है कि इसे अपने ईमान धर्म की चिंता भले न हो लेकिन दूसरों का धर्म-ईमान नहीं बिगाड़ना चाहिए।

इस सूतक के तेरह दिन तो रुक जाना चाहिए था।

दुःख का अधिकार 

लेखक ने पास की दुकान वालों से पूछा तो पता लगा कि उसका तेईस बरस का जवान लड़का था।

उसका नाम भगवाना था। घर में उसकी बहू और पोता-पोती हैं।

लड़का डेढ़ बीघे जमीन पर खरबूजे की खेती करता था और उन्हें बेचकर अपने घर का खर्च चलाता था।

परसों सबेरे भगवाना खेत में गलती से एक साँप के ऊपर पैर रख देता, जिसके  कारण साँप उसे डस लेता है।

उसकी माँ ओझा से झाड़-फूक करवाती है।

नागदेव की पूजा के लिए दान-दक्षिणा देती है।

इन कामों से घर का अनाज, आटा आदि सब चला जाता है।  

लेकिन भगवाना बच नहीं पाता है।

माँ, बहू और बच्चे उससे लिपट-लिपटकर रोते हैं। साँप के जहर के कारण उसका पूरा शरीर काला पड़ जाता है।

पुत्र का अंतिम संस्कार करने के लिए घर में रखा चूनी और भूसी को बेचकर कफ़न लाया जाता है।

दूसरे दिन सुबह से बच्चे भूख के कारण बिलबिलाने लगे तो दादी उन्हें खाने के लिए खरबूजा दे देती है।

लेकिन  बहू का शरीर बुखार के कारण तप रहा था। घर में कुछ भीं बचा था और ऐसे में माँ को कोई भी एक पैसा उधर देने वाला भी नहीं था।

तब वह मजबूर होकर घर में पड़े कुछ खरबूजों को लेकर बेचने चली जाती है।

उसके पास इसके आलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था।

Dukh Ka Adhikar Class 9

पहले लेखक को लगा था कि बुढ़िया सच में कठोर दिल वाली है।

उसका बेटा मर गया और वह खरबूजा बेच रही है।

लेखक को याद आया कि पिछले साल उनके पड़ोस में एक अमीर पुत्र की मृत्यु हो गई थी।

उसकी माँ ढाई महीने तक पलंग से उठी नहीं थी। उसके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रह थे।

वह पन्द्रह-पन्द्रह मिनट में पुत्र के वियोग में मूर्छित हो जाती थी।

दो-दो डॉक्टर उसके सिरहाने बैठे रहते थे। पूरे समय बर्फ रखी रहती थी।

शहर भर के लोगों के मन में उसके पुत्र के शोक में हृदय पिघल उठे थे।

लेखक राह चलते मन में दोनों पुत्रों की दुखी माताओं की तुलना करता है।

क्या शोक करने और दुःख मनाने के लिए भी सुविधा और अधिकार दोनों चाहिए?

इस कहानी में माँ इतनी मजबूर है कि वह अपना दुःख भी नहीं मना सकती।

अतः उसका अपने दुःख पर भी अधिकार नहीं है।

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दुःख का अधिकार Class 9

डॉ. अजीत भारती

By hindi Bharti

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