जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान

जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान ?

भाव पल्लवन/भाव विस्तार का उदाहरण

प्रश्न-10.जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान का भाव पल्लवन कीजिए

उत्तर-“जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान” का भाव पल्लवन।

“जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान” यह कहावत भारतीय संस्कृति और दर्शन में निहित है। इसका अर्थ है कि माता और मातृभूमि यानी जन्मभूमि, स्वर्ग से भी अधिक महान और पूजनीय होती हैं। यह कहावत मातृभूमि के प्रति गहरे सम्मान, प्रेम और आस्था का प्रतीक है, जो यह बताती है कि व्यक्ति के लिए उसकी मातृभूमि और माता का स्थान सबसे ऊँचा होता है, यहाँ तक कि स्वर्ग से भी।

माता वह है जो हमें जन्म देती है, हमारा पालन-पोषण करती है और हमें जीवन के मूल्यों, संस्कारों और आदर्शों से परिचित कराती है। माता का स्थान किसी भी व्यक्ति के जीवन में सर्वोच्च होता है, क्योंकि वह न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी हमारा निर्माण करती है। उसकी ममता, सेवा और समर्पण को किसी भी स्वर्गिक सुख से श्रेष्ठ माना गया है।

जिस भूमि पर हमारा जन्म होता है, जहाँ हमारी जड़ें होती हैं, वह हमारे लिए अत्यंत पवित्र होती है। यह वह स्थान है जो हमारी पहचान, संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं को आकार देता है। हमारी मातृभूमि हमें पोषण देती है, हमारी आवश्यकताओं को पूरा करती है और हमें सुरक्षा और स्वतंत्रता का अनुभव कराती है। मातृभूमि का सम्मान और सेवा एक व्यक्ति का परम कर्तव्य माना जाता है।


अनुच्छेद लेखन


स्वर्ग का प्रतीक आमतौर पर अत्यधिक सुख, समृद्धि और आनंद के रूप में किया जाता है। लेकिन यह कहावत इस तथ्य को रेखांकित करती है कि भले ही स्वर्ग कितना ही सुखदायक क्यों न हो, वह हमारे जन्मदाता (माता) और हमारी जन्मभूमि की महानता से बढ़कर नहीं हो सकता। माता और मातृभूमि का स्थान जीवन में सर्वप्रथम होता है और उनकी सेवा और सम्मान से बड़ा कोई सुख या आनंद नहीं है।

भारतीय परंपरा में, मातृभूमि को माता का ही स्वरूप माना गया है, और इसे “मातृभूमि” कहकर संबोधित किया जाता है। चाहे वह रामायण हो या महाभारत, भारत की पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं में मातृभूमि के प्रति प्रेम और उसके लिए बलिदान को सर्वोच्च आदर्श माना गया है।

यह कहावत हमें यह सिखाती है कि जीवन में माता और मातृभूमि से बड़ा कुछ नहीं है। चाहे दुनिया में कितनी भी भौतिक समृद्धि या सुख प्राप्त हो, यदि हम अपनी जन्मभूमि और माता का सम्मान नहीं कर सकते, तो हमारा जीवन अधूरा है।

उक्त कहावत का उद्देश्य यह बताना है कि हमारे जीवन में माता और मातृभूमि का स्थान सर्वोच्च और पूजनीय है। इनसे प्राप्त स्नेह, सुरक्षा और संस्कार किसी भी स्वर्गिक सुख से बढ़कर हैं, और इन्हें सम्मानित करना और इनकी सेवा करना हर व्यक्ति का कर्तव्य है।

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anuchched lekhan

By hindi Bharti

Dr.Ajeet Bhartee M.A.hindi M.phile (hindi) P.hd.(hindi) CTET

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