दूर के ढोल सुहाने होते हैं
दूर के ढोल सुहाने होते हैं?
8-भाव पल्लवन/भाव विस्तार का उदाहरण
प्रश्न-8. “ईश्वर किसी विशेष धर्म या जाति का नहीं होता” का भाव पल्लवन लिखिए।
उत्तर- “ईश्वर किसी विशेष धर्म या जाति का नहीं होता” का भाव पल्लवन।
ईश्वर किसी विशेष धर्म या जाति का नहीं होता, यह विचार एक आध्यात्मिक सत्य पर आधारित है।
ईश्वर की परिकल्पना व्यापक और सर्वव्यापी है, जो किसी एक धर्म, जाति या समुदाय की सीमाओं में बंधी नहीं होती।
संसार के विभिन्न धर्मों में ईश्वर की परिभाषाएं और रूप भले ही अलग-अलग हो सकते हैं,
लेकिन इन सभी में एक मूल तत्व यह है कि ईश्वर सबके लिए समान और समभाव रखता है।
सभी धर्मों का उद्देश्य मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर की ओर मार्गदर्शन करना है।
चाहे वह हिंदू धर्म में भगवान हों, इस्लाम में अल्लाह, ईसाई धर्म में गॉड या सिख धर्म में वाहेगुरु,
सभी की आस्था के मूल में यह विचार निहित है कि ईश्वर सभी जीवों की रचना करता है और
उनके प्रति समान प्रेम और करुणा रखता है।
ईश्वर न तो किसी विशेष जाति से बंधे हैं, न ही किसी विशेष भाषा या भूगोल से।
वह कण-कण में व्याप्त है और हर जीव के भीतर रहते हैं।
धर्म और जाति जैसी मानवीय विभाजन रेखाएं समाज द्वारा बनाई गई हैं, लेकिन ईश्वर इन सबसे अलग है।
वह न केवल मानव जाति का, बल्कि पूरी सृष्टि का पालनहार है और सबके प्रति उसकी दृष्टि एक समान है।
इसलिए कहा जाता है कि “ईश्वर किसी विशेष धर्म या जाति का नहीं होता”।
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9-भाव पल्लवन/भाव विस्तार का उदाहरण
प्रश्न-9. “दूर के ढोल सुहाने होते हैं” का भाव पल्लवन लिखिए।
उत्तर- “दूर के ढोल सुहाने होते हैं” का भाव पल्लवन।
“दूर के ढोल सुहाने होते हैं” एक प्रसिद्ध हिंदी कहावत है, जिसका अर्थ है कि जो चीज़ें हमें दूर से सुंदर लगती हैं,
सच में वे उतनी सरल नहीं होतीं जितनी वे दिखती हैं। इसका भाव यह है कि जब हम किसी वस्तु,
व्यक्ति, स्थान को पास से देखते हैं, तो उसकी वास्तविकताएँ, चुनौतियाँ और कठिनाइयाँ सामने आती हैं,
जो दूर से दिखाई नहीं देतीं।
इस कहावत का उपयोग अक्सर उस स्थिति में किया जाता है, जब लोग किसी और की जिंदगी,
उनकी सफलता या उनकी परिस्थितियों को देखकर उसे आदर्श मान लेते हैं। उदाहरण के लिए,
कोई व्यक्ति जो एक महान हस्ती को दूर से देखता है, उसकी जीवनशैली और कामयाबी से प्रभावित होता है
और सोचता है कि उस व्यक्ति का जीवन बेहद आरामदायक और सुखद है।
लेकिन जब उसे करीब से देखा जाए, तो यह पता चलता है कि उस शोहरत के पीछे कितनी मेहनत,
संघर्ष और कठिनाइयाँ छिपी हैं।
यह कहावत इस बात पर भी जोर देती है कि अक्सर हमें दूसरों की परिस्थितियाँ बेहतर लगती हैं,
जबकि हमारी अपनी स्थिति में भी उतने ही सुख और संतोष के तत्व मौजूद हो सकते हैं।
यह मनुष्य का स्वभाव है कि हम दूर की चीज़ों में आकर्षण देखते हैं और अपनी वर्तमान
परिस्थितियों को कम आंकते हैं।
कुल मिलाकर, “दूर के ढोल सुहाने होते हैं” जीवन की वास्तविकता की ओर इशारा करती है
कि दूर से आकर्षक दिखने वाली चीज़ें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसा हम देखते और सोचते हैं।
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जरा और मृत्यु https://www.doubtnut.com/qna/648958707