madhur madhur mere deepak jal summary
madhur madhur mere deepak jal summary?
C.B.S.E. /CLASS 10 /HINDI-B /SPARSH-2
पाठ-मधुर-मधुर मेरे दीपक जल-महादेवी वर्मा
(पाठ का सारांश Summary)
पहले पद में कवयित्री कहती है कि मेरे मन के आस्था रूपी दीपक लगातार जलते रहो। हर समय, हर क्षण, युगों तक जले जिससे प्रियतम का रास्ता प्रकाशित होता रहे। ईश्वर रूपी प्रियतम के लिए रोशनी जला रखी है। जिस प्रकार धूप अथवा अगरबत्ती के जलने से उसकी सुगंध चारो ओर फ़ैल जाती है मेरे आस्था के दीपक ठीक उसी प्रकार से अपनी प्रसिद्ध चारो तरफ फैला दे। तू अपने इस नरम कोमल मोम के समान शरीर को पिघला दे। जिससे तेरे भीतर का घमंड जलकर नष्ट हो जाए। तू अपने जीवन के एक-एक कण को गला दे और चारो ओर सागर के समान विशाल प्रकाश बनकर फ़ैल जा। हे दीपक तू खुश होकर जलता रहे।
आगे कवयित्री कहती है कि इस जगत में जितने भी शीतल, कोमल और नए प्राणी हैं, दीपक से चिंगारी मांग रहे हैं। अर्थात् सभी अपने मन में आस्था की लौ जलाना चाहते हैं। कवयित्री मनुष्य को पतंगा नहीं ज्वाला बनने की प्रेरणा देती है। जब संसार रूपी पतंगा जल नहीं पाता है तब वह अपना सिर पीटने लगता है। वह चाहकर भी अपने घमंड को मिटा नहीं पाया। तू इस आस्थाहीन संसार में कांपते हुए जलते रहे।
कवयित्री आसमान की ओर देखकर कहती है कि कितने असंख्य तारे दिखाई देते हैं। परन्तु उनके पास प्रेम नहीं है। अर्थात् उनके पास प्रकाश तो है लेकिन वे संसार को रोशन नहीं कर सकते हैं। वहीँ सागर जल से भरे होते हैं और अपने हृदय को जलाकर बादल बनाते हैं। बादल चमकती हुई बिजली से घिरे हुए हैं। अर्थात् यह संसार ईर्ष्या और घृणा से घिरा हुआ है। हे दीपक! फिर भी तुम खुश और प्रसन्न होकर जलते रहो।
समाप्त!
धन्यवाद!
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