निर्गुनभक्ति की प्रमुख विशेषताएँ
निर्गुनभक्ति की प्रमुख विशेषताएँ?
1- गुरु महिमा का गुणगान- इस युग के कवियों ने गुरु को सच्चा मार्ग दर्शक बताया है। उन्होंने गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा बताया है।
2- मूर्ति पूजा का विरोध- इस युग के कवियों ने अपनी कविताओं में मूर्ति पूजा का खंडन किया है।
3- बाह्य आडम्बरों का विरोध- इस युग के कवियों ने बाहरी दिखावे को महत्वहीन बताया है।
4- अवतारवाद का विरोध- इस युग के कवि अवतार को मान्यता नहीं देते हैं न ही अवतारवाद पर विश्वास करते हैं।
5- निराकार ईश्वर की उपासना- निराकार का अर्थ है –जिसका कोई आकार न हो । ये कवि मूर्ति पूजा के पक्ष में नहीं थे इसलिए उन्होंने निराकार ईश्वर की उपासना की है।
6- आत्मा और परमात्मा के विरह मिलन का चित्रण- इसमें साधक आत्मा बनकर परमात्मा से मिलने के लिए व्याकुल रहती है।
7- रहस्यवाद की भावना- जो इस लोक में दिखाई नहीं देता है, उसके प्रति प्रेम दिखाया गया है।
8- निजी धार्मिक सिद्धांतों का आभाव- इस युग के कवियों के अपने कोई सिद्धांत नहीं हैं। उन्होंने पूर्वजों के सिद्धांतों का अनुकरण किया है।
9- सामाजिक कुरीतियों का विरोध- उस समय जाति-पाति, ऊँच-नीच और छुआ-छूत जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया है ।
10- ब्रज और सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग- निर्गुण भक्ति के कवि देश भ्रमण अधिक करते थे। साधु-संतों का मिलन भी अधिक रहता था इसलिए इनकी भाषा में उनका प्रभाव भी दिखाई देता है ।
11- प्रतीकों का प्रयोग- वे किसी बात को सीधे न कहकर उसे प्रतीकों के माध्यम से कहते थे।
12- शिक्षा का आभाव- इस युग के अधिकांश कवि पढ़े-लिखे नहीं थे।
उदाहरण- कबीर- मसि कागद छूयो नहीं, कलम गही नहीं हाथ।
निर्गुणभक्ति के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
1-कबीरदास- बीजक।
2-जायसी- पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, बारहमासा।
3- मलूकदास- ज्ञानबोध, रत्नखान, भक्ति विवेक।
4- मंझन- मधुमालती।
5- नूर मोहम्मद- इन्द्रावती।
6- उसमान- चित्रावली।
7- सुन्दर दास- सुन्दर विलास, ज्ञानसमुद्र।
संत काव्यधारा की विशेषताएँ