ल्हासा की ओर
ल्हासा की ओर क्या है ? इसमें लेखक ने तिब्बत की यात्रा वृतान्त का वर्णन अपनी भाषा – शैली में किया है । उन्हेंने चीन के ल्हासा राज्य की यात्रा की थी । यात्रा के दौरान जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा । उसका रोचक ढंग से उल्लेख किया है । उन कठिनाइयों का सामना उन्होंने ने किस प्रकार किया संक्षेप में इस पाठ में वर्णन किया है ।
प्रश्न-अभ्यास/प्रश्न-उत्तर
प्रश्न-1. थोंगला के पहले के आख़िरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के वावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों ?
उत्तर- इसका मुख्य कारण था- संबंधों का महत्व। तिब्बत में इस मार्ग पर यात्रियों के लिए एक-जैसी व्यवस्थाएँ नहीं थीं। इसलिए वहाँ जिनकी अच्छी जान-पहचान होती थी उन्हें ठहरने का उचित स्थान मिल जाता था। बिना जान – पहचान के यात्रियों को इधर – उधर भटकना पड़ता था । तिब्बत के लोग शाम को छंङ (मदिरा या शराब) पीकर मस्त हो जाते थे। फिर वे यात्रियों का ध्यान नहीं रखते थे ।
प्रश्न-2. उस समय के तिब्बत में हथियार का क़ानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था ?
उत्तर– उस समय के तिब्बत में हथियार रखने का कोई क़ानून नहीं था। इसलिए लोग खुलेआम पिस्तौल बन्दूक रखते थे । वहाँ कई सुनसान स्थान भी थे। पुलिस की भी कोई व्यवस्था नहीं थी । डाकू किसी को भी आसानी से मार सकते थे। इसीलिए यात्रियों को हत्या और लूटमार भय हमेशा बना रहता था।
प्रश्न-3. लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गए थे?
उत्तर- लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से घोड़ा के धीमे चलने और रास्ता भूलने के कारण पिछड़ गया था।
प्रश्न-4. लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परन्तु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया ?
उत्तर- लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से इसलिए रोका। वह वहाँ जाकर अधिक समय लगाएगा । लेखक को एक सप्ताह तक उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी । परन्तु दूसरी बार, लेखक को वहाँ के मंदिर में रखी अनेक मूल्यवान हाथों से लिखी पुस्तकें मिल गयी थीं। जिनका वे अध्ययन एकांत में करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सुमति को यजमानों के पास जाने की आज्ञा दे दी।
प्रश्न-5. अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाईयों का सामना करा पड़ा?
उत्तर–यात्रा के दौरान लेखक को निम्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा –
- दूसरी बार लेखक को ठहरने के स्थान को लेकर कठिनाई का सामना करना पड़ा।
- डाँड़ा थोङ्ला जैसी खतरनाक जगहों से होकर जाना पड़ता था।
3.रास्ता भूलने के कारण लेखक अपने साथियों से पिछड़ गया था ।
प्रश्न-6. प्रस्तुत यात्रा-वृत्तान्त के आधार पर बताइए की उस समय का तिब्बती समाज कैसा था ?
उत्तर- वहाँ का तिंग्री प्रदेश कई जागीरों में बटा हुआ था । अधिकतर जागीर मठों (विहारों) के अधीन थे। जागीरों के मालिक खेती का प्रबंध स्वयं करवाते थे। खेती करने के लिए उन्हें बेगार(फ्री) मजदूर मिल जाते थे । सभी खेतों की देखभाल कोई भिक्षु करता था। तिब्बत में जाति-पाँति, छुआछूत नहीं था । वहाँ की औरतें परदा नहीं करतीं थीं। निम्न स्तर के भिखमंगों को छोड़कर कोई भी अपरिचित व्यक्ति भी घर के अन्दर जा सकता था । वह घर की किसी भी महिला को चाय, मक्खन और सोडा-नमक आदि देकर अपने लिए चाय बनवा सकता था । अगर आपको भरोसा न हो कि वे तुम्हारा सारा सामान चाय बनाने में डालेंगे तो आप जाकर देख भी सकते हैं ।
प्रश्न-7.’मैं अब पुस्तकों के भीतर था। ‘नीचे दिए गए विकल्पों में से कौन-सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है ?
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ़ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
उत्तर (क)- लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
रचना अभिव्यक्ति (ल्हासा की ओर)
प्रश्न-8. सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर- तिब्बत के तिंग्री प्रदेश में लगभग हर गाँव में सुमति के परिचित थे। वह उनके यहाँ धर्मगुरु के रूप में सम्मानित होता था। लोग उसे आदरपूर्वक घर में स्थान देते थे। वह सबको बोध गया का गंडा प्रदान करता था। लोग गंडे को पाकर धन्य अनुभव करते थे। सुमति-सुमति स्वभाव से सरल, मिलनसार, स्नेही और मृदु रहा होगा । तभी लोग उसे उचित आदर देते होंगे । गंडा किसे कहते हैं- बौद्ध धर्म के अनुसार डंडे के ऊपर कोई कपड़ा बाँधकर बनाया गया धार्मिक चिन्ह ।
प्रश्न-9. ‘हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था‘। – उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार-व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ से यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।
उत्तर- यह बात सही है कि हम जब किसी से मिलते हैं तो हमारा व्यवहार वेशभूषा के आधार पर तय होता है। हम अच्छे कपड़ों को देखकर किसी को अपनाते हैं । तो गंदे कपड़ों को देखकर उनका अनादर (सम्मान न करना) करते हैं । लेखक भिखमंगों के वेश में यात्रा कर रहा था। इसलिए उसे यह अपेक्षा नहीं थी कि शेकर विहार का भिक्षु उसे सम्मानपूर्वक अपनाएगा।
मेरे विचार से वेशभूषा के आधार पर व्यवहार करना ठीक नहीं है। कई संत-महात्मा और भिक्षु साधारण वस्त्र पहनते हैं, किंतु उनका चरित्र बहुत अच्छा होता है। यह बात भी सही है कि हम पर पहला प्रभाव वेशभूषा का ही पड़ता है। उसी के आधार पर हम भले – बुरे की पहचान करते हैं। वेशभूषा ही सब कुछ नहीं है ।
प्रश्न-10. यात्रा – वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द -चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपके राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर- तिब्बत एक पहाड़ी प्रदेश है। यह समुद्र तल की गहराई लगभग 17- 18 हज़ार फीट की ऊँचाई पर है। यहाँ दूर-दूरतक न कोई आबादी और न ही कोई आदमी दिखाई पड़ता है । एक ओर जहाँ हिमालय की बर्फ से ढकीं चोटियाँ तो दूसरी ओर ऊँचे-ऊँचे नंगे पहाड़ दिखाई देते हैं । तिंगरी नमक स्थान में एक विशाल मैदान है जिसके चारो ओर पहाड़ ही पहाड़ हैं ।
मेरा शहर- मेरे शहर का नाम भोपाल है । भोपाल को झीलों का शहर कहते हैं । यहाँ एक विशाल तालाब और कई छोटे -छोटे तालाब हैं । पूरा शहर ऊँचे – नीचे पहाड़ों पर बसा है। और भी कई चीजे हैं । मेरा शहर बहुत ही सुन्दर हैं ।
प्रश्न-11.आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी ? यात्रा के दौरान हुए अनुभव को लिखकर प्रस्तुत करें ।
उत्तर- हमारे पिताजी ने दिसम्बर माह में लगभग 5 दिनों की यात्रा की योजना बनाई । 22 दिसंबर 2019 की शाम को सबसे पहले हम अपने पूरे परिवार के साथ कानपुर से अमृतसर (पंजाब ) के लिए ट्रेन से निकले । दस बजे सुबह पहुँच गए। वहाँ एक गेस्टहाउस में रुके । शाम को सभी गोल्डन टेम्पल के दर्शन करने गए । तीन घंटे तक हम मंदिर के दर्शन करते रहे । वहीं लगंर प्रसाद (एक प्रकार का भोजन) प्राप्त करने के बाद एक घंटे तक मंदिर के आस-पास की बाजार में घूमें ।
रात्रि 12 बजे एक टूरिस्ट कार से जम्मू वैष्णव देवी के दर्शन हेतु निकले। करीब सुबह 5 बजे जम्मू पहुँचे। एक घंटे में तैयार होकर टिकट लेकर देवी का जयकारा लगाते हुए दर्शन के लिए चल पड़े ।
पहलीबार ऊँचे – ऊँचे रास्तों और बर्फ से ढके पहाड़ों को देखकर मन रोमाँचित हो रहा था । पूरा दिन हमारा यहीं व्यतीत हुआ । रात्रि विश्राम के पश्चात् अगली सुबह बाजार में खरीदारी की । शाम को फिर सभी ट्रेन से कानपुर अपने गृह निवास को ओर निकल पड़े । इस तरह हमारी यात्रा सुखद और सफल सम्पन्न हुई ।
प्रश्न-12. यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक विधा है । आपकी इस पाठ्यपुस्तक में कौन-कौन सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है ?
उत्तर-हमारी पाठ्यपुस्तक में निम्न पाठ तथा विधाएँ हैं, विवरण इस प्रकार है–
क्र. पाठ विधाएँ 1. दो बैलों की कथा कहानी 2 ल्हासा की ओर यात्रा-वृत्तान्त 3 साँवले सपनों की याद रेखाचित्र 4 देवी मैना को भस्म कर दिया गया कहानी 5 प्रेमचंद के फटे जूते व्यंग्य 6 मेरे बचपन के दिन संस्मरण
प्रश्न-13. किसी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है ; जैसे –
- सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।
- पौ फटने वाला था कि हम गाँव में थे।
- तारों की छाँव रहते -रहते हम गाँव पहुँच गए।
नीचे दिए गए वाक्य को अलग-अलग तरीकों में लिखिए –
‘जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे। ‘
उत्तर-1. घोड़ा चल भी रहा है या नहीं।
यह पता ही नहीं चल पा रहा था ।
1-कभी लगता था घोड़ा आगे जा रहा है,कभी लगता था पीछे जा रहा है।
2-ऐसा जान पड़ता कि घोड़ा आगे जाते-जाते फिर पीछे जाने लगता है ।
प्रश्न-14. ऐसे शब्द जो किसी अंचल यानी क्षेत्र विशेष में प्रयुक्त होते हैं उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढकर लिखिए।
उत्तर- पाठ में आए हुए आंचलिक शब्द इस प्रकार हैं-कुची – कुची, भीटा, खोटी, राहदारी, गंडा, भरिया, थुक्पा, छड. आदि |
प्रश्न-15. पाठ में कागज़, अक्षर, मैदान के आगे क्रमश : मोटे, अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से उनकी विशेषता उभर कर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।
उत्तर-पाठ में आये कुछ विशेषण शब्द इस प्रकार हैं- सैनिक, भद्र, निर्जन, बहुत पिछड़ना, धीमे चलना , टोटीदार, कड़ी धूप, ख़ुफ़िया विभाग, विशाल , श्वेत आदि |
धन्यवाद!
डॉ. अजीत भारती
ल्हासा की ओर