मनुष्यता पाठ का सार
मनुष्यता पाठ का सार?
C.B.S.E. /CLASS 10 /HINDI-B /N.C.E.R.T.
पाठ-मनुष्यता-मैथिलीशरण गुप्त
(पाठ का सारांश Summary)
इस कविता में देशप्रेम, परोपकार और उदार बनने की प्रेरणा दी गई है।
कवि कहते हैं कि ये बात आप अपने मन में रख लें कि सभी को एक न एक दिन अवश्य मरना है। इसलिए मृत्यु से डरना नहीं चाहिए। अगर मरना, तो ऐसे मरो कि लोग हमेशा याद करें। महान काम करके मरोगे तो सही मृत्यु मानी जाएगी, नहीं तो मरना व्यर्थ होगा। जो देश या समाज के लिए जीता है, वह कभी नहीं मरता है। जो अपने लिए खाता-कमाता है, वह पशु के के समान है। सच्चा मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए मरे।
दूसरे पद में
कवि कहते हैं कि सरस्वती उसी उदार मनुष्य का गुणगान करती है, धरती उसी को धन्य मानती है, हमेशा उसी मनुष्य का यश गूंजता है एवं उसी उदार को पूरी प्रकृति पूजती है, जो अखंड संसार से आत्मीयता रखता है। वास्तव में मनुष्य वही है जो मनुष्य के मरता है।
तीसरे पद में
कवि कहते हैं कि दानी राजा रंतिदेव ने घर आए भूखे को अपना भोजन दे दिया। वहीं दधीचि ऋषि ने समाज की भलाई के लिए अपनी हड्डियाँ दान कर दीं। उशीनर राजा शिवि ने कबूतर के प्राण बचाने के लिए अपने शरीर का मांस दान कर दिया। वीर कर्ण ने ख़ुशी से ब्राह्मण के माँगने पर अपने कवच और कुंडल दान कर दिए। इस नाशवान शरीर से अमर प्राणी क्यों डरे? मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए मरे।
चौथे पद में
मैथिलीशरण कहते हैं कि दूसरों के प्रति सहानुभूति रखना ही महानता है। इस गुण से पूरी धरती मनुष्य के वश में हो जाती है। बुद्ध की दया में विपरीत बातें बह गईं। विनय के कारण सभी वर्गों के लोग उनके सामने झुक गए, जो भलाई करता है, वही सच्चा उदार मनुष्य है। मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए जिए।
पाँचवे पद में
कवि सभी से कहते हैं कि धन प्राप्त करना कोई बड़ी बात नहीं है, यह छोटी उपलब्धि है। धन के बल पर अपने मन में घमंड न करना। ये न सोचना कि भगवान तुम्हारे साथ है। इस संसार में कोई अनाथ नहीं है, सभी के साथ त्रिलोक नाथ(भगवान) हैं। ईश्वर बड़ा दयालु है उसका हाथ गरीबों पर है। जो व्यक्ति धैर्य नहीं रखता है, वह बड़ा भाग्यहीन है। मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए जिए अथवा मरे।
छठवें पद में
कवि कहता है कि विशाल आकाश में अनगिनत देवता खड़े हैं। वे अपने बड़े हाथों से तुम्हारा स्वागत करेंगे। एक-दूसरे का सहारा बनकर उठो और आगे बड़ो। जहाँ देवता तुम्हें अपनी गोद में बैठाने के लिए तैयार हैं। तुम इस तरह मत जियो कि एक दूसरे के काम न आ सको। सच्चा मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए जिए।
सातवें पद में
कवि कहते हैं कि मनुष्य के लिए सबसे बड़ी समझ यही है कि वह संसार के सभी लोगों को अपना बंधु समझे। पुराणों के अनुसार सभी का एक ही पिता स्वयंभू है। विभिन्न कर्मों के परिणाम स्वरुप बाहरी रूप से भिन्न हैं। लेकिन आंतरिक दृष्टि से सब एक समान हैं। यह पाप है कि कोई व्यक्ति अपने बंधु का कष्ट दूर न करे। सच्चा मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए जिए या मरे।
आठवें पद में
कवि ने कहा है कि हे पाठकों! आप जीवन में जिस रास्ते पर चलना चाहते हो, खुश होकर चलो। रास्ते में जो भी मुसीबत आए उसे दूर करते हुए आगे बढ़ते जाओ। मेल-मिलाप कम न हो, दूरी न बढ़े। सभी मत-पंथ एक होकर आगे बढ़ें। मनुष्य के लिए सबसे बड़ी ताकत यही है कि वह औरों का भी कल्याण करे तथा स्वयं भी तरे। मनुष्य वही है जो मनुष्य के काम आए।
समाप्त!
धन्यवाद!