भारतीय ज्ञान परम्परा और हिंदी साहित्य
भारतीय ज्ञान परम्परा और हिंदी साहित्य?
बी.ए.(प्रथम वर्ष) बी.ए.(I सेमेस्टर) हिंदी काव्य
प्रश्न-1.भारतीय ज्ञान परम्परा और हिंदी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-भारतीय ज्ञान परंपरा लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। कोई भी सभ्यता, संस्कृति, आर्थिक और राजनीति से नहीं ज्ञान से उन्नति करता है। भारत में हमेशा ज्ञान को महत्व दिया गया है।
1.भारतीय संस्कृति-
भारत सदियों से संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान परम्पराओं का देश रहा है। भारतीय संस्कृति त्याग का सन्देश देती है। भारत पूरे विश्व को अपना परिवार मानता है। “वसुधैव कुटुम्बकम”
2.भारतीय ज्ञान परम्परा के स्रोत-
भारतीय ज्ञान परम्परा के स्रोत वेद, पुराण, गीता, रामायण आदि हैं। भारतीय दर्शन, विज्ञान, साहित्य, भाषा, व्याकरण, संगीत आदि ने मानव कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
3.ज्ञान परम्परा और साहित्य-
साहित्य का उद्देश्य मनुष्य के आन्तरिक और बाहरी संघर्षों को सरल भाषा में चित्रित करता है। और उनकी उपलब्धियों को लोगों तक पहुँचाता है। जिससे विश्व में प्रेम और शांति स्थापित हो सके।
4.भारतीय ज्ञान परम्परा और हिंदी साहित्य-
भारत धरती पर देव भूमि के समान है। जिसकी एक ओर हिमालय तो दूसरी ओर सागर चरण चूमता है। जिसने मूल्यवान संस्कृति को जन्म दिया है। सबके कल्याण की बात करना भारत की विशेषता है। जिसमें सागर की तरह सहन करने की शक्ति है। यहाँ अनेक जाति और धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं। भारत पर कई हमले हुए फिर भी यहाँ की संस्कृति और परम्परा अमर है। भारत की गौरव गाथा को कवि और लेखकों ने साहित्य के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
5.हिंदी साहित्य का इतिहास और प्रयोजन-
हिंदी साहित्य के इतिहास का मुख्य प्रयोजन साहित्य की विशेषताओं को लोगों तक पहुँचाना है। इतिहास का अर्थ है-जो घटित हो चुका। हिंदी साहित्य का इतिहास उसके जन्म और विकास को समझाता है। इसमें साहित्य के इतिहास, काल विभाजन, नामकरण और योगदान देने वाले लेखकों और कवियों का अध्ययन किया जाता है। इतिहास के माध्यम से सभी स्तरों को सरल भाषा में समझा जा सकता है। तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थियों के बारे में जानकारी मिलती है। उससे आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है। इसके माध्यम से विश्लेषण करने का अवसर मिलता है। साहित्य का इतिहास मानव जीवन की कला को प्रकट करता है। इसीलिए साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है।
6.हिंदी साहित्य के इतिहास के स्रोत-
इतिहास हमेशा प्रमाण के साथ आगे बढ़ता है। हिंदी साहित्य आन्तरिक और बाहरी प्रमाणों के साथ इतिहास लिखा गया। आन्तरिक प्रमाणों में गोकुलनाथ की ‘चौरासी वैष्णव की वार्ता’, नाभादास की भक्तमाल, भिखारीदास की ‘काव्य निर्णय’, मातादीन मिश्र का ‘कवित्र रत्नाकर’ हरिश्चंद्र की ‘सुंदरी तिलक’ में कई कवियों की कविताओं की जानकारी मिलती है। बाहरी प्रमाणों में ‘कर्नल टॉड’ द्वारा लिखे गए इतिहास चारण कवियों और ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की खोज से अज्ञात कवि और लेखकों का परिचय मिलता है। लोगों द्वारा सुने गए इतिहास और किस्से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते हैं जो साहित्य लेखन के अच्छे स्रोत हैं।
7.हिंदी साहित्य इतिहास लेखन की परम्परा-
लेखकों को बाहरी और आन्तरिक प्रमाणों की सामग्री एकत्र कर हिंदी साहित्य का इतिहास लिखना चाहिए। हिंदी साहित्य का इतिहास सबसे पहले फ्रेंच विद्वान ‘गार्सा दा तासी’ ने लिखा था। इसमें हिंदी और उर्दू के कई कवियों का विवरण मिलता है। इसका पहला भाग 1839 ई. में प्रकाशित हुआ था। फिर शिवसिंह सेंगर ने ‘शिव सिंह सरोज’ नामक ग्रन्थ लिखा है। उसमें एक हजार कवियों का चित्रण मिलता है। उसके बाद जॉर्ज ग्रियर्सन ने भी हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा है। उन्होंने काल विभाजन करने का प्रयास किया। मिश्रबंधुओं ने ‘मिश्रबंधु विनोद’ नामक हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा है। यह चार भागों में है। फिर आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ लिखा है जिसे प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। बाद में कई विद्वानों ने भी इतिहास लिखे हैं।
डॉ. अजीत भारती