भक्ति आन्दोलन की पृष्ठभूमि एवं विकास
भक्ति आन्दोलन की पृष्ठभूमि एवं विकास पर संक्षिप्त निबंध?
बी.ए.(प्रथम वर्ष)(प्रथम सेमेस्टर) हिंदी (हिंदी काव्य)
प्रश्न-1.भक्ति आन्दोलन की पृष्ठभूमि एवं विकास पर संक्षिप्त निबंध लिखिए।
अथवा
हिंदी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर-1.भक्तिकाल का समय एवं नाम-भक्तिकाल का समय 1375 वि. से 1700 वि. तक माना जाता है।
भक्ति शब्द का सबसे पहले प्रयोग श्वेताश्वेतर उपनिषद में मिलता है।
2-भक्ति काल का उदभव-
इसके उद्भव और विकास पर हिंदी साहित्य में दो प्रकार की विचारधाराएँ पाई जाती हैं।
कुछ विद्धान भक्ति के उदय कारण राजनैतिक और कुछ सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारण मानते हैं।
रामचंद्र शुक्ल जी उद्भव का राजनैतिक कारण मानते हैं।
उनके अनुसार देश में मुसलमानों का राज्य स्थापित हो जाने के कारण हताश हिन्दुओं के लिए भगवान की शक्ति की ओर जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
3-भक्ति ईसाई धर्म और मुस्लिम की देन नहीं है-
बेवर, कीथ, ग्रियर्सन और विल्सन आदि विदेशी विद्वानों ने भक्ति को ईसाई की देन बताया है। वहीं डॉ. ताराचंद हुंमायूं, और डॉ. आबिद हुसैन का कहना कि भक्ति आन्दोलन का उद्भव मुस्लिम संस्कृति के संपर्क में आने के कारण हुआ है। लेकिन अधिकांश विद्धानों ने दोनों की मान्यताओं को नकार दिया।
4-भक्ति पराजित मनोवृत्ति का परिणाम नहीं-
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भक्ति के उदय की कहानी को न तो पराजित मनोवृत्ति का परिणाम मानते हैं और न इसे मुस्लिम राज्य की प्रतिष्ठा की प्रक्रिया मानते हैं। उनके अनुसार सभी मुस्लिम शासक अत्याचारी नहीं थे। शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, विष्णुस्वामी, निम्बार्क, रामानंद और बल्लभाचार्य आदि सभी आचार्य मुस्लिम युग में ही हुए थे। कबीर, सूर, नंददास, तुलसी और जायसी आदि कवियों में निराशा का भाव बिल्कुल नहीं दिखाई देता है।
5-भक्तिकाल की व्याख्या एवं जाति-पाति के बंधन से मुक्त-
भक्तिकाल ऊँचे धर्म की व्याख्या करता है। इसमें उच्चकोटि का काव्य है। रस के हिसाब से भी श्रेष्ठ है। यह लोक और परलोक को भी स्पर्श करता है। इसमें आडम्बर हीन और सरस जीवन की झाँकी दिखाई देती है। धीरे-धीरे इसमें जाति-पाति का बंधन समाप्त हो जाता है। अर्थात् जब मुस्लिम प्रभाव के कारण धर्म परिवर्तन का जोर चला तब कबीर जैसे संतों ने जमकर जाति-पाति का विरोध किया।
6-भक्ति आन्दोलन से पौराणिक भावना का विकास-
डॉ. रामरत्न के अनुसार भक्ति अन्दोलन से पौराणिक धर्म का पुनः उत्थान हुआ। इस युद में सीता-राम और राधा-कृष्ण के माध्यम से धार्मिक भावनाएँ विकसित हुईं।
7-भक्ति का मूल द्राविड़ी में-
डॉ. सत्येंद्र भक्ति का उद्भव द्राविड़ी से मानते हैं, दक्षिण के वैष्ण से नहीं। आज के अनुसंधानकर्ताओं ने सिद्ध कर दिया है कि भक्ति का मूल द्राविड़ी में है।
8-आलवार भक्तों को भक्ति आन्दोलन का श्रेय-
आठवीं-नवीं शताब्दी में दक्षिण भारत में पौराणिक धर्म का प्रचार हो चुका था। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भक्ति आन्दोलन का श्रेय दक्षिण भारत के आलवार भक्तों को दिया है। उनकी संख्या बारह है। इनमें से एक आचाल नाम की भक्तिन भी थी जो मीरा की तरह कृष्ण को अपना पति मानती थी। आगे रामानुजाचार्य ने दास्य भाव प्रचार किया। वहीँ तुलसीदास ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के शील, सौन्दर्य एवं शक्ति का समन्वय रूप प्रस्तुत किया। सूरदास ने कृष्ण भक्ति में रसिकता का समावेश किया। बल्लभाचार्य ने कृष्ण की उपसना पर बल दिया। मध्वाचार्य ने विष्णु का प्रचार किया। निम्बार्क ने लक्ष्मी-विष्णु के स्थान पर राधा-कृष्ण का प्रचार किया। मुसलमानों में छुआछूत नहीं था। तत्कालीन बौद्धों और सिद्धों तथा नाथ योगियों में भी इस प्रकार बंधन नहीं था। कबीर, दादू, नानक आदि ने भक्ति के रूप को विकसित किया।
9-भक्ति की प्राचीन परम्परा धारा-
अंत हम कह सकते हैं कि भक्ति की यह धारा तो दक्षिण में लगातार बह रही है लेकिन उत्तर भारत में भी इसका प्रचार पहले से ही है। अतः भक्ति की पौध बाहर से नहीं लाई गयी थी। मुस्लिम समुदाय ने न सिंचन किया और न ही यह निराशा के कारण उत्पन्न हुई। यह तो प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा की लगातार बिना रुकावट से बहती हुई धारा है और इस धारा उद्गम अचानक से नहीं हुआ है। भक्तिकाल का युग स्वर्णिम था।
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भक्ति अंदोलन की पृष्ठभूमि-https://hindibharti.in/%E0%A4%AD%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BF-%E0%A4%86%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B2%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%AD%E0%A5%82/