पल्लवन किसे कहते हैं

पल्लवन किसे कहते हैं? भाव पल्लवन में किसी सूक्ति, मुहावरा अथवा किसी कथन को विस्तार में लिखना ही भाव पल्लवन या भाव विस्तार कहते हैं ।

भाव पल्लवन/भाव विस्तार 

  • परिभाषा
  • उदाहरण
  • भाव पल्लवन लिखते समय सावधानियां
  • अभ्यास 

प्रश्न-1. भाव पल्लवन किसे कहते हैं ?

उत्तर- भाव पल्लवन की परिभाषा-

किसी मूल कथन को विस्तार के साथ लिखने अथवा अभिव्यक्ति करने की क्रिया को भाव-पल्लवन कहते हैं।

अर्थात् भाव विस्तार को ही भाव पल्लवन कहा जाता है। किसी भावपूर्ण वाक्य, कथन, वाक्यांश, सूक्ति अथवा लोकोक्ति को विस्तार से लिखने की कला ही भाव पल्लवन कहलाती है।

जैसे- संतोष ही परम सुख है।

         “संतोष ही परम सुख है।”

उत्तर- मनुष्य अपने जीवन में सभी प्रकार की उपलब्धियों को पाना चाहता है। इन उपलब्धियों के लिए वह लगातार प्रयास भी करता है। वह अपने श्रम से बहुत सा धन एकत्र कर लेता है। वह इस धन का उपयोग दो तरह से करता है- पहला दान देने में, दूसरा स्वयं के लिए। धन के प्रति उसका लगाव जब अधिक हो जाता है, तो वह निन्न्यानबे से सौ के फेर में हमेशा पड़ा रहता है। धन के प्रति लालच एक दिन उसे घोर

स्वार्थी बनाकर कहीं का नहीं छोड़ता है। ऐसा ही एक लालची राजा था उसने लालच में आकर देवता से सभी वस्तुओं को सोना बना देने का वरदान मांग लिया, जब उसका भोजन भी सोने का बन गया, तो लालची राजा बहुत पछताया। यदि राजा संतोष को ही सुख मान लेता तो ऐसा नहीं होता। जीवन में कई धनवान मिलेंगे जो सबकुछ होते हुए भी सुखी नहीं होते, वहीं साधारण व्यक्ति छोटी-सी कुटिया में रहकर भी संतुष्ट रहते हैं। अतः संतोष ही परम सुख है।

प्रश्न-2. भाव पल्लवन का अर्थ लिखिए

उत्तर- पल्लवन का सीधा और स्पष्ट अर्थ है- विस्तार करना या बढ़ावा देना। यह संक्षेपण का विपरीत (उल्टा) होता है।

प्रश्न-3. भाव पल्लवन/भाव विस्तार लिखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर- भाव पल्लवन लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1- पल्लवन की भाषा सरल होनी चाहिए।

2- इसमें उदाहरणों और आँखों देखी घटना का प्रयोग करना चाहिए।

3- विचारों को बहुत ही सोच-समझ कर लिखना चाहिए।

4- भाव विस्तार विषय से संबंधित होना चाहिए।

5- दिए गए विषय के मूल वाक्य, सूक्ति अथवा लोकोक्ति को पढ़कर मन में एक रुपरेखा बनाने के बाद ही लिखना।

6 भाव पल्लवन लिखने के लिए व्यास शैली(पहले भाव को विस्तार से लिखना और बाद में सूत्र रूप में समेटना) का प्रयोग करना चाहिए।

7- पल्लवन लेखन में क्रमबद्धता होनी चाहिए।

प्रश्न-3  “चरित्र ही सर्वोत्तम धन है” का भाव पल्लवन लिखिए।

उत्तर- अक्सर कहा जाता है कि आपने धन खोया, तो कुछ नहीं खोया, यदि स्वास्थ्य खोया तो थोड़ा कुछ खोया, किन्तु यदि आपने चरित्र खो दिया तो सब कुछ खो दिया। चरित्र वह मूल मणि है, जिससे मानव का व्यक्तितत्व प्रकाशित होता है। इसके समक्ष धन बल, बुद्धिबल, सबकुछ व्यर्थ लगता है। इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि हमारे देश में आदर्श महापुरुष राम हो या कृष्ण अपने चरित्र के कारण ही पूजे जाते हैं।

शिवाजी का चरित्र जहाँ देशभक्त, मातृभूमि, सेवक के रूप में एक आदर्श चरित्र रहा है। और वे इसी रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। वे महिलाओं का बहुत आदर करते थे। एक बार तो उन्होंने म्लेच्छ जाति के एक शत्रु की सुंदर स्त्री को, जो बंदी बनाकर लाई गई थी, उसे माँ कहकर सम्मान दिया और उसे सुरक्षित उसके घर पहुँचाया। हमें अपने विचार हमेशा अच्छे रखने चाहिए। जो व्यक्ति सद्गुणों के आधार पर कर्म करता है, संसार में उसे यश मिलता है। जो सच्चे आचरण का पालन करते हैं, उन्हें मानसिक्त सुख मिलता है।

(अभ्यास)

प्रश्न-4. “एकता में ही बल है” का भाव पल्लवन लिखिए।

उत्तर- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समूह में मिलजुलकर एक भाव से रहता है। व्यक्ति जिस परिवार में रहता है, वहाँ उसे एकता की भावना के साथ रहना

पड़ता है। घर-परिवार में यदि एकता का भाव नहीं होगा, तो सभी व्यक्ति ईर्ष्या और स्वार्थ से ग्रसित होंगे। अगर परिवार में शांति और सद्भाना नहीं रहेगी, तो प्रतिदिन झगडे होंगे। एक ईमानदार और मेहनती 

किसान था। वह अपने परिवार को एकता के सूत्र में रखना चाहता था। लेकिन परिवार के सभी लोग लड़ते रहते थे। एक दिन किसान ने सभी को एक-एक लकड़ी तोड़ने को दी, तो परिवार के सभी लोगों ने तोड़ दी। जब किसान ने कई लकड़ियों को एक साथ मिलाकर तोड़ने को कहा तो कोई भी उसे तोड़ नहीं पाया। तब सभी ने जाना कि एकता में शक्ति होती है। एकता से परिवार ही नहीं बल्कि पूरा देश भी मजबूत होता है। एकता होने से सुख और शांति की स्थापना होती है।

प्रश्न-5. “विद्या से विनम्रता आती है” का भाव पल्लवन लिखिए।

उत्तर- विद्या से मनुष्य सत्य और असत्य में अंतर करना ही नहीं सीखता है बल्कि उससे वह एक आदर्श और विनम्र प्राणी बनता है। विद्या मनुष्य समाज और विद्यालय से प्राप्त करता है। विद्या से व्यक्ति उदंडता के स्थान पर झुकना सीखता है। उससे मनुष्य अपने स्वाभिमान की रक्षा करना सीखता है। वह विनम्रता का गुण गुरु के द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर सीखता है। उसके द्वारा वह अपने व्यक्तित्व को एक नया रूप दे सकता है। 

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By hindi Bharti

Dr.Ajeet Bhartee M.A.hindi M.phile (hindi) P.hd.(hindi) CTET

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