पर्वत प्रदेश में पावस का सार
पर्वत प्रदेश में पावस का सार?
CBSE Board/NCERT/Class-10/Hindi-B/Sparsh-2
पाठ-पर्वत प्रदेश में पावस-सुमित्रानंदन पन्त
(पाठ का सार Summary)
इसमें पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु का वर्णन किया गया है।
वर्षा ऋतु का समय और पर्वतीय प्रदेश था। क्षण-क्षण में प्रकृति अपना रूप बदल रही थी। ठीक सामने मेखला(करधनी) के समान विशाल पर्वत दूर-दूर तक फैले हुए थे। पर्वत पर हजारों फूल खिले हुए थे। फूल पर्वत की आँख लग रहे थे। मानों ऐसा लग रहा था जैसे पर्वत अपनी हजार फूल रूपी आँखों से नीचे फैले हुए जल में अपने विशाल रूप को देख रहा हो। उस पर्वत के नीचे एक विशाल तालाब था, जो दर्पण के समान जल स्वच्छ और पारदर्शी था। उसमें पर्वत की सुंदर तस्वीर दिखाई दे रही है।
दूसरे पद में पन्त जी कहते हैं कि पर्वतों पर बहने वाले झरने की आवाज ऐसी लगती है जैसे मानो वे पर्वत के गुणगान कर रहे हों। उनकी आवाज को सुनकर नस-नस में जोश भर जाता है। झाग वाली झरने की बूंदे मोती की लड़ियों के समान सुन्दर लगती हैं। पहाड़ के ऊपर खड़े ऊँचे पेड़ों के मन में ऊँची आकांक्षाएँ छिपी हैं। ये शांत आकाश को मौन, बिना पलक झपकाए, अटल और चिंता में खड़े हैं। ऐसा लगता है जैसे आकाश के रहस्यों को सुलझाने में लगे हैं।
तीसरे पद में कवि कहता है कि मानो ऐसा लग रहा है जैसे अचानक एक पूरा पर्वत पारे के समान अधिक सफ़ेद और चमकीले पंखों को फड़फड़ाता हुआ ऊपर आकाश में उड़ रहा हो। शाल के पेड़ बादलों के झुण्ड में ऐसे धँसे हुए लग रहे हैं जैसे डरकर धरती में धँस गए हों। तालाब के जल से धुआँ उठने लगा पर ऐसा लग रहा है जैसे तालाब में आग लग गई हो। इस प्रकार वर्षा के देवता इंद्र बादल रूपी विमान में घूम घूमकर जादू भरा खेल दिखा रहे थे।
समाप्त!
धन्यवाद!
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