आदिकाल की विशेषताएँ उदाहरण
आदिकाल की विशेषताएँ उदाहरण?
प्रश्न-1.आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-यह हिंदी साहित्य का प्रारंभिक काल है, जो लगभग 1000 ईस्वी से लेकर 1350 ईस्वी तक माना जाता है। इस काल को वीरगाथा काल, चारणकाल, सिद्ध-सामंत काल और आदिकाल भी कहा जाता है। इस समय के साहित्य में वीरता, शौर्य, धार्मिकता और सामाजिक चेतना का प्रमुख स्थान रहा है। यह काल हिंदी साहित्य के विकास का प्रारंभिक चरण है, जब हिंदी भाषा और साहित्य की नींव रखी गई थी। इस काल की साहित्यिक कृतियाँ मुख्यतः वीर रस, भक्ति और नैतिकता से प्रेरित हैं। इसकी विशेषताएँ समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को उदाहरण सहित विस्तार से समझेंगे-
1-वीरगाथा साहित्य का उदय
आदिकाल की सबसे प्रमुख विशेषता वीरगाथा साहित्य का विकास है। इस समय की रचनाएँ मुख्यतः राजाओं और योद्धाओं की वीरता, साहस और शौर्य का गुणगान करती हैं। इस साहित्य का उद्देश्य समाज में वीरता, देशभक्ति और उत्साह का संचार करना था।
उदाहरण:-‘पृथ्वीराज रासो’:- यह महाकाव्य चंदबरदाई द्वारा रचित है, जिसमें पृथ्वीराज चौहान की वीरता, मोहम्मद गौरी के साथ उनका संघर्ष और उनकी प्रेम कहानी का विस्तृत वर्णन किया गया है।
‘बीसलदेव रासो’:- नरपति नाल्ह द्वारा रचित इस काव्य में अजमेर के राजा बीसलदेव की वीरता और उनके साहसिक कार्यों का उल्लेख मिलता है।
2-धार्मिक और नैतिक साहित्य का विकास
आदिकाल के साहित्य में धर्म और नैतिकता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इस समय की रचनाएँ धार्मिक उपदेशों और नैतिक मूल्यों को समाज में स्थापित करने का प्रयास करती हैं। सिद्ध और नाथ पंथ के संतों ने अपने उपदेशों और काव्य के माध्यम से धार्मिकता और योग-साधना का प्रचार-प्रसार किया।
उदाहरण:-‘गोरखवाणी’:- गुरु गोरखनाथ द्वारा रचित साहित्य में योग, साधना और धर्म के महत्व को बताया गया है।
‘सरहपा के दोहे’:- सरहपा द्वारा रचित दोहों में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और नैतिक उपदेशों का समावेश है।
3-आश्रयदाताओं की प्रशंसा
इस काल में कई कवियों ने अपने काव्य में राजाओं, योद्धाओं और अपने आश्रयदाताओं की प्रशंसा की है। आश्रयदाता वे होते हैं जो कवियों को अपने दरबार में सम्मान, सुरक्षा और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, जिससे वे अपनी रचनात्मकता को विकसित कर सकें। कवियों ने उनके दरबार में मिलने वाले सम्मान और पुरस्कारों का उल्लेख करते हुए आश्रयदाताओं की प्रशंसा की है।
4-आम जनता की उपेक्षा
इस समय के कवियों ने अपने काव्य में आम जनता की भावनाओं, विचार और उनके जीवन की सच्चाईयों का वर्णन नहीं किया है। साधारण लोगों की कठिनाइयाँ, जैसे कि गरीबी, भुखमरी और सामाजिक असमानता, पर कवियों ने बहुत कम लिखा। इसके बजाय, वे ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं पर अधिक ध्यान देते थे। कवियों का ध्यान भी उच्च वर्गों की सराहना और प्रशंसा में केंद्रित था। वे आश्रयदाताओं के दरबारों में जाकर उनकी सेवा करते थे, जिससे वे आम जन की समस्याओं से दूर हो जाते थे।
5-युद्धों का सजीव वर्णन
वीर गाथा काल में युद्धों का सजीव वर्णन न केवल उस समय की वीरता और संघर्ष को उजागर करता है, बल्कि यह मानवता की महानता और बलिदान की गाथाएँ भी प्रस्तुत करता है। ये युद्ध केवल भौतिक संघर्ष नहीं थे, बल्कि ये साहस, बलिदान, और देशभक्ति के प्रतीक थे। कवियों ने अपने काव्य में इन युद्धों को इस तरह से प्रस्तुत किया कि वे न केवल ऐतिहासिक घटनाएँ बन गईं, बल्कि संस्कृति और धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा भी। यह काल युद्धों के माध्यम से वीरता, साहस और मानवता की अनंत संभावनाओं को दिखता है।
6- भाषा और शैली की सरलता
इस काल की भाषा सरल और सहज थी। आदिकाल की भाषा अपभ्रंश, अवहट्ट और देशज शब्दों का मिश्रण है। यह भाषा आम जनता के समझ में आने वाली थी, जिससे साहित्य का प्रसार अधिक हो सका। रचनाओं में भावों की अभिव्यक्ति के लिए सीमित शब्दावली का प्रयोग किया गया।
उदाहरण:-‘पृथ्वीराज रासो’:- इसमें अपभ्रंश भाषा के साथ-साथ देशज शब्दों का प्रयोग हुआ है, जो इसे जनसामान्य के लिए सरल बनाता है।
‘अल्हा-खण्ड’:- आल्हा बुंदेलखंड के दो भाइयों की वीरता की कहानियाँ कहते हैं। यह काव्य बुंदेलखंड की बुन्देली और अवधी भाषा में रचित है, जो वहां के लोगों की समझ में आने वाली थी।
7-चारण और भाटों का योगदान
आदिकाल का साहित्य मुख्यतः चारण और भाट कवियों द्वारा रचा गया है। ये कवि राजा-महाराजाओं के दरबार में उनकी वीरता और शौर्य की गाथाएँ सुनाते थे। इन कवियों का काम न केवल राजाओं का महिमामंडन करना था, बल्कि समाज को प्रेरित करना और वीरता के आदर्श स्थापित करना भी था।
उदाहरण:-‘पृथ्वीराज रासो’:- चंदबरदाई, जो कि एक चारण कवि थे, ने पृथ्वीराज की वीरता और शौर्य को अपनी रचना में जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है।
‘कीर्तिलता’:- विद्यापति द्वारा रचित इस काव्य में राजा शिवसिंह के गुणों और उनके न्यायप्रिय शासन का गुणगान किया गया है।
8-नारी का आदर्श रूप
आदिकाल के साहित्य में नारी को आदर्श और पूजनीय रूप में चित्रित किया गया है। नारी का चित्रण मुख्यतः साहस, सतीत्व और त्याग के रूप में हुआ है। इस समय की रचनाओं में नारी को एक समर्पित पत्नी, सच्ची प्रेमिका और मातृभूमि के प्रति निष्ठावान के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
उदाहरण:-संयोगिता का चित्रण:- ‘पृथ्वीराज रासो’ में संयोगिता को एक आदर्श नारी के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपने पति के प्रति पूर्णतः समर्पित और साहसी है।
9-श्रृंगार और प्रकृति का वर्णन
आदिकाल का साहित्य मुख्यतः वीर रस और भक्ति रस पर आधारित है, लेकिन इसमें श्रृंगार और प्रकृति का वर्णन भी मिलता है। कवियों ने नायक-नायिका के प्रेम, उनके मिलन और विरह के साथ-साथ प्रकृति के सौंदर्य का भी चित्रण किया है।
उदाहरण:-‘अल्हा-खण्ड’:- इसमें युद्ध के दृश्यों के साथ-साथ नायक-नायिका के प्रेम और प्रकृति के वर्णन का समावेश है।
‘बीसलदेव रासो’:- इस रचना में नायिका के रूप-सौंदर्य और नायक के प्रति उसके प्रेम का सुन्दर चित्रण मिलता है।
10-समाज का चित्रण
आदिकाल के साहित्य में उस समय के समाज का स्पष्ट चित्रण मिलता है। यह समय सामंती व्यवस्था का था, जहाँ राजपूत शासकों का प्रभाव था। समाज में युद्ध और वीरता का महत्त्व था। जाति प्रथा, सामाजिक विभाजन और धार्मिक कर्मकांड भी समाज का हिस्सा थे।
उदाहरण:-‘पृथ्वीराज रासो’:-इसमें पृथ्वीराज और मोहम्मद गौरी के युद्ध के माध्यम से तत्कालीन समाज की संरचना और राजनीतिक व्यवस्था का वर्णन मिलता है।
‘हमीर रासो’:- इसमें रणथंभौर के राजा हम्मीर की गाथा के माध्यम से राजपूतों की सामाजिक स्थिति और उनके संघर्ष का वर्णन है।
11-नाटकीयता का समावेश
आदिकाल की रचनाओं में नाटकीयता का महत्वपूर्ण स्थान है। रचनाओं में संवाद, नायक-नायिका के प्रेम प्रसंग, युद्ध के दृश्य और सजीव चित्रण का समावेश होता है, जो पाठकों और श्रोताओं को बाँधे रखता है।
उदाहरण:-‘प्रह्लाद चरित्र’:- इसमें राजा हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद के बीच संवाद, हिरण्यकश्यप की कठोरता और प्रह्लाद की भक्ति का नाटकीय चित्रण है।
‘पृथ्वीराज रासो’:- इसमें पृथ्वीराज और गौरी के युद्ध का वर्णन नाटकीयता से भरपूर है, जिससे पाठक रोमांचित हो उठता है।
12-भक्तिपूर्ण रचनाएँ
हालांकि भक्ति काल का प्रारंभ 14वीं शताब्दी से माना जाता है, लेकिन आदिकाल में भी भक्ति साहित्य की शुरुआत हो चुकी थी। संतों और साधकों ने ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण की भावनाओं को अपने काव्य में व्यक्त किया।
उदाहरण:-नाथ पंथ के संत:- गोरखनाथ और उनके अनुयायियों की रचनाएँ भक्ति, योग और साधना से ओतप्रोत हैं।
दोहा साहित्य:- दोहे के माध्यम से संतों ने भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना व्यक्त की है।
13-सामाजिक और राजनीतिक चेतना
आदिकाल का साहित्य समाज में राजनीतिक और सामाजिक चेतना का भी प्रसार करता है। रचनाओं में सामाजिक बुराइयों, अन्याय और शासकों की अत्याचारी नीतियों के प्रति असंतोष व्यक्त किया गया है।
उदाहरण:-‘कीर्तिलता’: इसमें विद्यापति ने अपने समय के समाज और राजनीति की वास्तविकताओं को प्रस्तुत किया है और शिवसिंह के न्यायप्रिय शासन की प्रशंसा की है।
‘सरहपा की रचनाएँ’: इन रचनाओं में तत्कालीन समाज की धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों के प्रति विरोध व्यक्त किया गया है।
14-संगीत और काव्य की संगति
आदिकाल का साहित्य मुख्यतः काव्यात्मक रूप में है, जिसमें संगीत और लय का विशेष महत्त्व है। इस काल के अधिकांश काव्य राग-रागिनियों में गाए जाते थे, जिससे उनका प्रभाव और भी अधिक बढ़ जाता था।
उदाहरण:-‘अल्हा-खण्ड’: इस महाकाव्य का पाठ और गायन एक साथ होता है, जिसे अल्हा गायन कहा जाता है।
‘पृथ्वीराज रासो’: इसे भी विभिन्न राग-रागिनियों में गाया जाता था, जिससे इसका प्रभाव अधिक व्यापक हुआ।
15-काव्य की विविध विधाएँ
आदिकाल में काव्य की कई विधाओं का विकास हुआ, जिनमें प्रबंध काव्य, रासो, छप्पय, दोहा और आल्हा प्रमुख हैं। इन विधाओं का प्रयोग वीरता, प्रेम, भक्ति और नैतिक उपदेशों को व्यक्त करने के लिए किया गया।
उदाहरण:-दोहा: संतों और साधकों ने अपने उपदेश और भक्ति भाव को दोहों के माध्यम से व्यक्त किया।
रासो काव्य: वीरता और शौर्य की गाथाएँ रासो काव्य के माध्यम से प्रस्तुत की गईं।
16-समकालीन राजाओं का महिमामंडन
इस काल के कवियों ने समकालीन राजाओं और सामंतों का महिमामंडन किया है। उनकी वीरता, साहस और न्यायप्रियता का गुणगान किया गया है, जिससे समाज में इन शासकों का मान-सम्मान बढ़े।
उदाहरण:-हम्मीर रासो:-चन्द्रशेखर ने रणथंभौर के राजा हम्मीर की वीरता का वर्णन इस रचना में किया है।
कीर्तिलता:- विद्यापति ने इस रचना में राजा शिवसिंह के गुणों का बखान किया है।
17-निष्कर्ष
आदिकाल हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें वीरता, भक्ति, नैतिकता और सामाजिक चेतना का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। है। इस काल की रचनाएँ समाज को वीरता, धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। यद्यपि इस काल की अधिकांश रचनाएँ मौखिक परंपरा में ही रहीं लेकिन उन्होंने हिंदी साहित्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भविष्य के साहित्यिक प्रवाह को भी दिशा प्रदान की। आदिकाल का साहित्य वीरता, शौर्य और भक्ति की भावना को जन-जन तक पहुँचाने में सफल रहा। आदिकाल के साहित्य ने हिंदी भाषा और साहित्य के विकास को एक नई दिशा दी, जो आने वाले भक्ति काल और रीतिकाल के साहित्यिक प्रवाह की पूर्वपीठिका बना।
आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ –
1.पृथ्वीराज रासो- कवि चंदरबरदाई
2.खुमाण रासो-कवि दलपति-विजय
3.बीसलदेव रासो- कवि नरपति नाल्ह
4.विजयपाल रासो- नल्लसिंह
5.परमाल रासो(आल्हा खंड)-जगनिक
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