वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताएँ
वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताएँ ?
बी.ए.प्रथम वर्ष/प्रथम सेमेस्टर (हिंदी)
प्रश्न-10.वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-वैदिक भाषा की ध्वनि संबंधी विशेषताएँ-
वैदिक संस्कृत में जो छ, व्बह जिह्वामूलीय(जिस वर्ण का उच्चारण जीभ के मूल या बिलकुल पिछले भाग से होता है।
जैसे–यदि क या ख से पहले विसर्ग हो तो क या ख का उच्चारण (जैसे–दुःख में क ख का उच्चारण जिह्वामूलीय हो जाता है) तथा उपध्मानीय ध्वनियों(प‘ तथा ‘फ‘ के पूर्व आधे विसर्ग के समान जो ध्वनि होती है, उसे उपध्मानीय कहा जाता है।
जैसे- पफ।) थी, लौकिक संस्कृत में उनका लोप हो गया और इस प्रकार वैदिक संस्कृत की 52 ध्वनियों में से लौकिक संस्कृत में केवल 48 ध्वनियाँ रह गईं। लौकिक संस्कृत में ऋ, ऋ और लृ का उच्चारण भी अपने मूल रूप से बदल गया।
वैदिक संस्कृत में ए और ओ का उच्चारण भी अपने मूल रूप से परिवर्तित हो गया है।
वैदिक संस्कृत में ए और ओ का उच्चारण संयुक्त स्वरों के रूप में होता था किन्तु लौकिक संस्कृत में इनका उच्चारण संयुक्त स्वरों के रूप में न होकर मूल स्वरों के रूप में होने लगा। ऐ और औ का उच्चारण भी बदल कर ‘अई’ और ‘अउ’ जैसा हो गया।
अनुस्वार का उच्चारण अधिकांश में अनुनासिक (अनुनासिक वे स्वर हैं जिनमें मुख से अधिक तथा नासिका से कम ध्वनि निकलती है।
जैसे-
हंस, अंग आदि। अनुस्वार वे व्यंजन हैं जिसमें नाक से अनुस्वार की आवाज निकलती है। चाँद, हँस आदि।) के समान होने लग गया था।
मूर्धन्य ध्वनियों अर्थात ‘ट‘ वर्ग व्यजन ध्वनियाँ वैदिक संस्कृत में आरम्भ हो गई थीं और संस्कृत में ये अधिकाधिक प्रयुक्त हुईं।
वैदिक संस्कृत में गीतात्मक स्वराघात और बलात्मक स्वराधात थे किन्तु लौकिक संस्कृत में केवल बलाघात रह गया।
मूल भारतीय आर्य भाषा (भारत-ईरानी) की तुलना में प्राचीन भारतीय अपनी भाषा और स्वरों की संख्या कम हो गयी।
प्राचीन भारतीय आर्य भाषा में भारोपीय अन्तस्थ ध्वनियों म, न, का लोप हो गया।
प्राचीन भारतीय आर्य भाषा में अपश्रुति(एक शब्द में अथवा एक ही प्रत्यय या विभक्ति के योग से बना धातु शब्द, प्रत्यय या विभक्त में निर्देश क्रमानुसार स्वरध्वनि में हुए परिवर्तन को अपश्रुति कहते है।
जैसे-गान, गीत, गेय आदि।) का भी स्थान है।
अपश्रुति के अन्तर्गत गुण (ए, ओ, अर, अल = गुण स्वर) वृद्धि (ऐ, औ, आर, आल् वृद्धिस्वर) और सम्प्रसारण (य. व. र= सम्प्रसारण स्वर) का उल्लेख किया जाता है।
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डॉ. अजीत भारती