प्राकृत का परिचय

प्राकृत का परिचय? बी.ए.प्रथम वर्ष में प्राकृत भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ ।

बी.ए.(प्रथम वर्ष)/बी.ए.(प्रथम सेमेस्टर) हिंदी काव्य

2.प्रारंभिक हिंदी की विशेषताएँ एवं हिंदी पूर्व की भाषाओं में संक्षिप्त साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय 

(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न-4.प्राकृत का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?

अथवा

प्राकृत भाषा का परिचय दीजिए।

अथवा

प्राकृत भाषा का हिंदी में क्या योगदान है?

अथवा

प्राकृत भाषा का हिंदी से क्या संबंध है?

उत्तर-प्राकृत भाषा का परिचय- प्राकृत भाषा का समय 1 ई. से  500 ई. तक रहा है। मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा के विकास का दूसरा चरण प्राकृत भाषा है। प्राकृत का अर्थ होता है-जन की भाषा। इस काल में प्रचलित भाषाओं का विकास हुआ। पहली शती के आते-आते पालि भाषा का स्थान प्राकृत ने ले लिया। महावीर जैन के उपदेश और साहित्य की भाषा प्राकृत थी। प्राकृत बहुत मधुर भाषा थी। प्राकृत से कई आधुनिक भाषाओं का विकास हुआ-

(1)शौरसेनी-

यह भाषा मूल रूप से मथुरा और उसके आस-पास बोली जाती है। पश्चिमी हिंदी का विकास प्राकृत से हुआ है। संस्कृत के नाटकों की गद्य भाषा शौरसेनी है।

(2)पैशाची-

पैशाची कश्मीर, सिंध, और बिलोचिस्तान में बोली और समझी जाती थी। इसे पिशाचों की भाषा के नाम से भी जाना जाता है। पिशाच उन अनाथ लोगों को कहा जाता है जो आर्य संस्कृति को पूरी तरह से नहीं अपनाए। लेकिन पैशाची का मूल पाठ उपलब्ध नहीं है।

(3)महाराष्ट्रीय-

इसका मूल स्थान महाराष्ट्र था। महाराष्ट्रीय को उस युग की प्रमुख प्राकृत भाषा माना जाता था। कुछ लोग इसे पद्य भाषा भी मानते हैं। यह भाषा साहित्य की दृष्टि से संपन्न है। हर्ष और कालिदास आदि के नाटकों के गीतों की भाषा यही थी। इसलिए महाराष्ट्रीय भाषा को प्राकृतों में आदर्श भाषा मानी गई है।

(4)मागधी-

मागधी मगध के आस-पास की भाषा मानी गई है। बिहारी, उड़िया, बंगला, तथा असमी का विकास इसी भाषा से हुआ है। नाटकों में इसका प्रयोग छोटे पात्रों के लिए है। महाराष्ट्री और शौरसेनी की तुलना में मागधी का प्रयोग बहुत काम मिलता है।

(5)अर्द्ध मागधी-

अर्द्ध मागधी, मागधी और शौरसेनी के बीच की भाषा है। इसलिए इसमें दोनों भाषाओं की विशेषताएँ मिलती हैं। यह अवध और काशी की भाषा है। अर्द्ध मागधी का मुख्य रूप से प्रयोग जैन साहित्य में हुआ है। जैनियों ने इसके लिए आदि भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने इसमें कई ग्रंथ लिखे हैं।  

प्राकृत भाषा की विशेषताएँ- इसकी विशेषताएँ इस प्रकार से हैं-

1-प्राकृत भाषा में अधिकांश शब्द तद्भव हैं।

2-इसमें द्विवचन का प्रयोग बंद हो गया है।

3-प्राकृत में व्याकरणिक नियमों में पहले से  ज्यादा सरलता आ गई है।

4-इसमें ‘न के स्थान पर ‘ण का प्रयोग किया जाता है।

5-‘ट का ‘ड’ तथा ‘ठ का ‘ढ हो गया है जैसे घट का घड और मठिका का मढिका हो गया है।

6- इसमें ‘प’ का ‘व हो गया जैसे-ताप के स्थान पर ताव।

7-शब्दों में अर्थ की दृष्टि से भी परिवर्तन हुए।

8-जैन साहित्य प्राकृत भाषा में मिलता है।

9-इसमें विसर्ग का अभाव रहता है।

10-क से लेकर म तक के स्पर्शवर्ण पाए जाते हैं।

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प्राकृत साहित्य https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF

डॉ. अजीत भारती

By hindi Bharti

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