प्रगतिवादी युग की प्रमुख विशेषताएँ
प्रगतिवादी युग की प्रमुख विशेषताएँ?
प्रगति शब्द का अर्थ है–आगे बढ़ना। राजनीति के क्षेत्र में जिसे मार्क्सवाद/साम्यवाद कहते हैं। कविता के क्षेत्र में उसे प्रगतिवाद कहते हैं। इसका समय 1936 ई. से 1943 ई. तक माना जाता है। समाज का प्रत्येक वर्ग प्रगति करना चाहता है। यह वाद किसान, मजदूर तथा समाज के शोषित वर्गों के प्रति समानता पर बल देते हैं। साम्यवादी विचारधारा के आधार पर समाज को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-शोषक वर्ग और शोषित वर्ग।
1-क्रांति का स्वर-
इस युग के कवियों ने समाज के हर वर्ग के प्रति किए जाने वाले शोषण के विरुद्ध क्रांति का स्वर बुलंद किया है।
2-शोषितों के प्रति सहानुभूति-
प्रगतिवादियों कवियों ने शोषण की चक्की में पिसने वाले किसानों, मजदूरों और पीड़ितों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है । उनका पक्ष लिया है ।
3-शोषण करने वालों के प्रति विद्रोह-
प्रगतिवादी काव्य में शोषण करने वाले स्वार्थियों, कपटी, पूंजीपतियों(शोषितों) और अन्याय करने वालों के प्रति विद्रोह व्यक्त किया है।
3-शोषण करने वालों के प्रति विद्रोह-
प्रगतिवादी काव्य में शोषण करने वाले स्वार्थियों, कपटी, पूंजीपतियों(शोषितों) और अन्याय करने वालों के प्रति विद्रोह व्यक्त किया है।
4-सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण-
इस युग के कवियों ने छायावादी कवियों की तरह अपने सुख-दुःख को महत्व नहीं दिया है। उसके स्थान पर उन्होंने समाज की गरीबी, भुखमरी, अकाल और बेरोजगारी आदि सामाजिक यथार्थ का चित्रण किया है।
5-आर्थिक एवं सामाजिक समानता पर बल-
प्रगतिवादी कवियों ने आर्थिक एवं सामाजिक समानता पर अधिक बल दिया है, उन्होंने निम्न और उच्च वर्ग के बीच अंतर को समाप्त करने पर जोर दिया है।
6-धर्म और ईश्वर के प्रति अनास्था-
प्रगतिवादी कवि धर्म और ईश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में धर्म और ईश्वर को शोषण का हथियार माना है। वे ईश्वर से अधिक मानवीय शक्ति को महत्व देते हैं।
7-नारी-शोषण के प्रति मुक्ति का स्वर-
इस युग के कवियों ने नारी को भोग की वस्तु नहीं माना है, वे उसे माँ, देवी, बहिन, सखी, सहचरी आदि कहकर समाज में सम्मान दिलाया है। पंतजी ने नारी को शोषण मुक्ति के लिए कहा है कि-
उदाहरण- मुक्त करो! हे नर मुक्त करो।
8-समाज के निम्न वर्ग के प्रति करुणा का स्वर-
प्रगतिवादी कवियों ने समाज के निम्न वर्ग, मजदूर, किसान, भिखारी इत्यादि के प्रति अपना करुण भाव व्यक्त किया है।
उदाहरण-
वह तोड़ती पत्थर, इलाहबाद के पथ पर
नहीं कोई छायादार वृक्ष।
9- भाग्य की अपेक्षा कर्म की श्रेष्ठता पर बल देना-
इस युग के कवियों ने अपनी रचनाओं में भाग्य की अपेक्षा कर्म को महत्व दिया है। भाग्यवाद को पूंजीवादी शोषण को एक हथियार की तरह प्रयोग करते हैं।
10- प्रतीकों का प्रयोग-
प्रगतिवादी कवियों ने अपनी भावनाओं को स्पष्ट करने के लिए प्रतीकों का सहारा लिया है।
11-सरल भाषा का प्रयोग-
इस युग के कवियों ने अपनी रचनाओं में सरल और सुगम भाषा का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं पर अंग्रेजी और उर्दू भाषा के शब्द भी दिखाई देते हैं।
कवि एवं रचनाएँ
- 1-नागार्जुन- युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, तुमने कहा था
- 2-केदारनाथ अग्रवाल- युग की गंगा, नींद के बादल, अपूर्व
- 3-त्रिलोचन- मैं उस जनपद का कवि हूँ, धरती
- 4-रांगेय राघव- पांचाली, मेधावी, राह के दीपक
- शिवमंगल सिंह सुमन- वाणी की व्यथा, जीवन के गान