नमक का दारोगा पाठ का सारांश
नमक का दारोगा पाठ का सारांश क्या है? यहाँ पर कहानी को संक्षिप्त और सरल भाषा में प्रस्तुत किया जा रहा है । इसे कम शब्दों सरल ढंग समझा जा सकता है । मुझे आशा है कि संक्षिप्त में कहानी आपको पसंद आएगी।
पाठ का सार/संक्षिप्त पाठ–परिचय-प्रेमचंद
पार्ट-1
‘नमक का दरोगा’ की कहानी इस प्रकार है–कहानी का मुख्य पात्र मुंशी वंशीधर है। उसके नमक का दरोगा बनते ही पूरे परिवार में ख़ुशी छा जाती है। सभी अफसर वंशीधर के कार्य और व्यवहार से खुश थे।
एक रात वंशीधर अपने घर में मीठी नींद में सो रहे थे। अचानक उन्हें नदी पर गाड़ियों की आवाज तथा मल्लाहों का शोर सुनाई दिया।
पूछने पर पता चला कि जमीदार पंडित अलोपीदीन की ‘नमक’ से भरी गाड़ियाँ गलत तरके से पुल से पार करके जा रही थीं। जब गाड़ियों को रोका गया तो वे दरोगाजी के पास जाकर बोले मैं तो आपकी सेवा में आ रहे था। लेकिन ईमानदार दरोगा उन्हें पकड़ने का आदेश दे देता है। उसके बाद अलोपीदीन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है।
पार्ट-2
पंडित आलोपीदीन ने दरोगा वंशीधर को नया लड़का समझकर रिश्वत देने का प्रयास किया था। लेकिन दरोगाजी लालच में नहीं आए।
पंडित जी को कानून की गिरफ्त में आया देखकर सभी चकित थे। न्याय के मैदान में धन और धर्म के बीच लड़ाई शुरू हो जाती है। अंत में पंडित जी धन के बल पर जीत जाते हैं और दरोगा का सत्य हार जाता है। एक सप्ताह के बाद उसकी नौकरी से छुट्टी हो जाती है।
उसके बाद मुंशीजी के परिवार वालों की कठोर बातें और पिता जी के क्रोध का सामना करना पड़ता है। एक सप्ताह बीतने के बाद अचानक मुंशी जी के घर के दरवाजे पर एक सुन्दर रथ आकर खड़ा हो जाता है। उस रथ में पंडित अलोपीदीन बैठे होते हैं। उनके साथ कई नौकर भी हाथों में लाठियाँ लेकर आते हैं। वह अपने आने का कारण बताते हैं। वह मुंशी जी से प्रार्थना करते हुए स्टाम्प कागज पर हस्ताक्षर करके मैनेजर का पद स्वीकार करने का आग्रह करता है।
पार्ट-3
मुंशी जी कहते हैं कि मैं इस योग्य नहीं हूँ और उनके प्रस्ताव को ठुकरा देता है। वे कहते हैं कि ईश्वर आपको सदैव वहीं नदी के किनारे वाला बेमुरौवत,(जिसमें संकोच का अभाव) उद्दंड, कठोर परन्तु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाये रखे। वंशीधर की आँख भर आती है। उसने पंडित जी की ओर भक्ति और श्रद्धा से देखकर अपने काँपते हाथों से मैनेजरी के कागज पर हस्ताक्षर कर देता है। पंडित अलोपीदीन वंशीधर को ख़ुशी से गले लगा लेता है। कहानी समाप्त होती है।
डॉ. अजीत भारती
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