द्विवेदी युग की विशेषताएँ
द्विवेदी युग की विशेषताएँ? इसे आधुनिक हिंदी कविता का दूसरा युग है। इसे पुनर्जागरण काल भी कहते हैं। सन् 1900 से 1920 तक का समय द्विवेदी युग कहलाता है। इस काल के प्रवर्तक महावीर प्रसाद द्विवेदी जी हैं। इन्होंने 1903 से लेकर 1920 तक ‘सरस्वती’ नामक पत्रिका का संपादन किया था। इस युग में हिंदी खड़ीबोली के शुद्ध रूप का चलन शुरू हुआ था।
1- देश भक्ति की भावना- देश भक्ति की भावना इस युग के काव्य की प्रमुख विशेषता है। इस युग में देशभक्ति को व्यापक आधार मिला। इस काल में देश-भक्ति पर छोटी और बड़ी कविताएँ लिखी गईं।
2- अंग्रेजी शिक्षा का विरोध- इस युग की कविताओं में सामाजिक अंधविश्वासों और रूढ़ियों पर तीखे प्रहार किए गए।
3- अंधविश्वास और रूढ़ियों का विरोध- इस युग की कविताओं में सामाजिक अंधविश्वासों और रूढ़ियों पर तीखे प्रहार किए गए।
4-मानव प्रेम- इनकी कविताओं में मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना विशेष रूप से मिलती है।
dwivedi yug ki visheshtaen likhiye
5-अतीत के गौरव का गान- इस युग के कवियों ने प्राचीन भारत की संस्कृति तथा इसके गौरव का गान अपनी कविताओं में किया है।
6- हास्य-व्यंग्य प्रधान रचनाएँ- इस काल के काव्य में सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक अंधविश्वासों तथा विदेशी भाषा के प्रचार-प्रसार पर हास्य व्यंग्य पूर्ण रचनाएँ लिखी गई। फैशन और व्यभिचारी पर तीखे व्यंग्य लिखे गए हैं।
7- शुद्ध खड़ीबोली का प्रयोग- इस युग की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पहली बार व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध खड़ीबोली का प्रयोग किया गया।
8- प्रकृति चित्रण- इस काल में प्रकृति के मनोहर चित्र खींचे गए हैं। प्रकृति के मानवीकरण शैली का प्रयोग स्थान-स्थान पर मिलता है। जैसे-
“चारू चंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं थीं जल-थल में”।
9-छंदों का प्रयोग- इस युग के कवियों ने दोहा, चौपाई, रोला, गीतिका, हरिगीतिका आदि छंदों का सुन्दर प्रयोग किया है।
इस दृष्टि से इस युग में देश प्रेम, अतीत के गौरव का गान, सामजिक चेतना के विकास के साथ-साथ शुद्ध खड़ीबोली जैसी विशेषताओं का वर्णन इस काल की मुख्य विशेषता है।