आदिकाल की विशेषताएँ

आदिकाल की विशेषताएँ? यह हिंदी कविता का प्रारंभिक काल है। इसका समय वि. संवत 1050 से 1375 तक माना जाता है। भाव-पक्ष एवं कला-पक्ष की दृष्टि से इस युग की काव्यागत विशेषताएँ  इस प्रकार हैं-

1- आश्रयदाताओं की प्रशंसा- इस काल के अधिकांश कवि किसी न किसी राजा की शरण में रहते थे। इसलिए वे उन्हीं राजाओं का गुणगान करते थे।

2- वीर और शृंगार रस की प्रधानता- इस समय के कवियों की रचनाओं में वीर और शृंगार रस का अधिक प्रयोग दिखाई देता है।

3- युद्धों का सजीव वर्णन- कहा जाता है कि  कवि केवल काव्य रचना नहीं करते थे बल्कि युद्ध के मैदान में जाकर लड़ाई भी लड़ते थे। तभी तो इनकी रचनाओं में युद्ध का सजीव वर्णन दिखाई देता है।

4- जन समुदाय की उपेक्षा- इस समय  के कवियों ने अपने समय के जन समुदाय (लोगों) की समस्याओं का कोई उल्लेख नहीं किया है। वे पूरे समय अपने आश्रयदाताओं की प्रशंसा करने में ही लगे रहते थे।

5- ऐतिहासिक प्रमाण का अभाव- इनकी  अधिकांश रचनाओं में ऐतिहासिकता का अभाव है।  

6- रासो काव्य की परंपरा- इस काल की रचनाओं में रासो परंपरा का खूब चलन रहा है। जैसे- पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो, बीसलदेव रासो आदि।

7- वीरता और शौर्य की प्रधानता- इस युग के कवियों की रचनाओं में आश्रय दाताओं (राजाओं) की वीरता, शौर्य और पराक्रम का अधिक वर्णन मिलता है।


aadikal ki visheshtayen


8- चारण-भाट परंपरा- इस समय के कवि देश के विभिन्न भागों में घूम-घूमकर आश्रयदाताओं की गाथाओं को गा-गाकर सुनाया करते थे। इसलिए इन कवियों को चारण-भाट परंपरा का पोषक माना जाता था।

9- विवाह, युद्ध एवं आखेट का विशेष वर्णन- इन कवियों की रचनाओं में शिकार का विशेष वर्णन दिखाई देता है।

10- संदिग्ध रचनाएँ- इन कवियों की अधिकांश कृतियाँ इतिहास की दृष्टि से संदिग्ध हैं।

11- डिंगल-पिंगल भाषा का प्रयोग- इस काल के कवियों ने डिंगल, पिंगल भाषा-शैली का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया है।

डिंगल- (अपभ्रंश+राजस्थानी भाषा )

पिंगल- (अपभ्रंश+ब्रजभाषा)


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12- शब्दालंकारों की अधिकताइस युग के कवियों ने अर्थालंकार की अपेक्षा शब्दालंकारों का विशेष प्रयोग किया है।

13- छंदों का प्रयोग- इस काल की रचनाओं में दोहा और छप्पय छंद विशेष रूप से मिलते हैं। इसके अतिरिक्त त्रोटक, तोमर, दूहा, ढाल आदि छंदों में भी रचनायें मिलती हैं।

14- प्रबंध व मुक्तक काव्य- इस युग में प्रबंध काव्य व मुक्तक काव्यों की रचना अधिक हुई है।

15- देशभक्ति का अभाव- अधिकांश कवि सिर्फ आश्रयदाताओं की प्रशंसा में ही लगे रहते थे। उनका राष्ट्र के प्रति कोई लगाव नहीं था। 

16- इस समय लोक साहित्य भी लिखा गया था।

17- सिद्ध, जैन, नाथ संप्रदाय द्वारा धार्मिक काव्य रचनायें भी खूब लिखी गईं थी।

18- अधिकांश रासो काव्यों में कल्पना की अधिकता  है।

19- ओजगुण प्रधान काव्य- इस युग की रचनाओं में ओजगुण का प्रयोग विशेष रूप से मिलता है।


आदिकाल के प्रमुख कवि और उनके ग्रन्थ

  कवि                           ग्रन्थ  

चंद्रबरदाई   पृथ्वीराज चौहान

नरपति नाल्ह-   बीसलदेव रासो

दलपति विजय-   खुमान रासो

जगनिक-   आल्हाखंड (परमाल रासो)

नल्लसिंह-   विजयपाल रासो


आदिकाल-https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B2

भक्तिकाल

धन्यवाद! 

  डॉ. अजीत भारती

By hindi Bharti

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